Monday 29 August 2011

कविता का विषय


कविता का विषय या मुद्दा
फंफूद से जन्में
किसी मौसमी कुकुरमुत्ते की तरह हो सकता है

कवि,
फफूंद को सहेजता है
वैसा ही मौसम बनाता है
जिसमें फफूंद बढ़ती है
हजारों रंग और किस्मों के,
हजारों कुकुरमुत्ते पैदा हो जाते हैं।
अब सहूलियत रहती है कि कवि,
कुकुरमुत्ते की तुलना
गुलाब से करे।


कवि,
अंधेरी गुफाओं, दरारों, सीलन भरी, दबी-ढंकी,
सढ़ती हुई, दलदली जमीनों में रहतें है।
और लोग कहते हैं,
(जहां ना पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि)।

कवि,
राई बराबर संकरी नली के आगे
राई का दाना रखता है
दृष्टि को, नली से भी संकरा करता है
और फिर कहता है
राई पहाड़ भी होती है।

कवि,
मां-बहन की गालियों के अर्थ देखता है
रिश्तों में उत्तेजनाओं के अनर्थ देखता है
कवि परिभाषित करता है
अश्लीलता और उसके फलित,
शून्य के ईर्दगिर्द के गणित।

कवि,
तुक मिलाता है,
शब्द खाता है, अर्थ खाता है।

कवि,
शब्दों के बंदी हैं।
दुनियां भर की भाषाएं,
गूंगों अहसासों के खिलाफ साजिश हैं।
कवियों की कलम,
रक्त रंगी है।
शब्द ना हों तो
कवि, गूंगे के स्वाद से
ज्यादा बेचारा है।

कवि
अहसासों का संग्रहकर्ता है
अतीत बनाता है, स्मृति गढ़ता है

कवि
शेर के शिकार पर (साक्षात संवेदन पर)
सियारों की दावत है।
वह खाता है
अहसासों का बची-खुची खुरचन।


कवि
निःशब्द के सामने निरूपाय है।

कवि‍
तुम एक गहरी सांस लो
उसे रोके रहो, अपनी क्षमता तक।
फिर नाभि तक, सब खाली कर दो।
और अब बताओ,
कौन सी कविता लिखागे?
मौत पर।

Saturday 27 August 2011

झूठ के जलवों में खोना क्यों?

झूठ के जलवों में खोना क्यों?
खुदा का दोषी होना क्यों?

सब विधना की मर्जी है,
फिर तकदीर का रोना क्यों?

सब कुछ यहीं रह जाना है,
पाप-पुण्य का ढोना क्यों?

दर्द भी उसकी रहमत है,
पल-पल आंख भिगोना क्यों?

दसों दिशा वहीं मुस्काये,
जप तप जादू टोना क्यों?

उससे जनम उसी में मरण

पाना क्‍या  क्या और खोना क्यों?

अन्तर क्षीर है, अमृत है,
बाहर नीर, बिलौना क्यों?

अन्दर खोज खजाने पगले,
बाहर पकड़े दोना क्यों?

पत्थर छोड़ दे इगो का,
खुद ही खुद को डुबोना क्यों?

मौत अचानक आती है,
घोड़े बेच के सोना क्यों?

सपनों में भी ना आये,
उसका दर्द संजोना क्यों?

यूं तो दुनियां भूल गये,
आंखों में वो सलोना क्यों?


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Thursday 25 August 2011

महात्मा गांधी ने संसद और मनमोहन सिंहों के बारे में क्या कहा?

1909 में जब अंग्रेज हम पर राज कर रहे थे, तब भी संसद वगैरह थी और महात्मा गांधीजी ने संसदीय लोकतंत्र के बारे में लिखा था -
" जिसे आप पार्लियामेंटों की माता कहते हैं, वह पार्लियामेंट (संसद) तो बांझ और बेसवा (वैश्या) है... मैंने उसे बांझ कहा क्योंकि अब तक इस संसद ने अपने आप एक भी अच्छा काम नहीं किया... संसद सदस्‍य दिखावटी और स्वार्थी हैं। यहां सब अपना मतलब साधने की सोचते हैं। सिर्फ डर के कारण ही संसद  कुछ करती है। आज तक एक भी चीज को संसद ने ठिकाने लगाया हो, ऐसी कोई मिसाल देखने में नहीं आती... बड़े सवालों की चर्चा जब संसद में चलती है, तब उसके मेंबर पैर फैला कर लेटते हैं या बैठे बैठे झपकियां लेते रहते हैं.. या फिर इतने जोरों से चिल्लाते हैं कि सुनने वाले हैरान परेशान हो जाते हैं... जितना समय और पैसा संसद खर्च करती है उतना समय और पैसा अगर अच्छे लोगों को मिले तो प्रजा का उद्धार हो जाये । संसद को मैंने वैश्या कहा क्योंकि उसका कोई मालिक नहीं है, उसका कोई एक मालिक नहीं हो सकता। लेकिन बात इतनी नहीं है। जब कोई उसका मालिक बनता है, जैसे प्रधानमंत्री, तब भी उसकी चाल एक सरीखी नहीं रहती। जैसे बुरे हाल वैश्या के होते हैं, वैसे ही हमेशा संसद के होते हैं.. अपने दल को बलवान बनाने के लिए प्रधानमंत्री संसद में कैसे-कैसे काम करवाता है, इसकी मिसालें जतिनी चाहिए उतनी मिल सकती हैं... मुझे प्रधानमंत्रियों से द्वेष नहीं है लेकिन तजुर्बे यानि अनुभव से मैंने देखा है कि वे सच्चे देशाभिमानी नहीं कहे जा सकते... मैं हिम्मत के साथ कह सकता हूं कि उनमें शुद्ध भावना और सच्ची ईमानदारी नहीं होती.. "

क्या यही सब, आज, भारत की संसद और प्रधानमंत्री की भी कहानी नहीं है?

पानी में क्‍लोरीन कि‍तनी जहीन

आदमी को बनाने वाले पंचतत्‍वों में जल भी शामि‍ल है। लेकि‍न वि‍चि‍त्रता यह है कि जल से इंसान के रि‍श्‍ते बड़े ही नाजुक हैं। हम जानते हैं हर पानी पीने लायक नहीं होता तो हम जल को पेयजल बनाने के लि‍ये कई उपाय अपनाते हैं। 
पि‍छले 30 दि‍नों से पहले तो बुखार, फि‍र बुखार से नि‍जात पानी के लि‍ये खाई गई दवाईयों के साईड इफेक्‍ट स्‍वरूप पेट की खराबी की समस्‍या से गुजरना पड़ा ! कि‍सी भी बीमारी की मूल समस्‍या हमारा रहनसहन और खानपान यानि‍ क्‍या खाते और क्‍या पीते हैं ! महंगाई की वजह से खाना तो नि‍यंत्रण में है पर पानी ?  क्‍या करें पानी आज भी बहुत कम कीमत पर मि‍ल जाता है। लेकि‍न साफ, स्‍वच्‍छ पानी जरूरी नहीं कि‍ पीने लायक भी हो। तो हम में से कई लोग बाजार में मौजूद कई वाटर प्यूरीफायर कम्पनियों द्वारा किये जा रहे 100प्रतिशत शुद्ध पानी देने वाले वाटर प्यूरीफायर के आकर्षक विज्ञापनों के प्रभाव में आ जाते हैं जो यह दावा करती हैं कि वही सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराती हैं। लेकि‍न क्या आपने कभी सोचा कि पानी को शुद्ध करने के लिए आपके वाटर प्यूरीफायर में कौन सी प्रक्रिया प्रयोग में लाई जा रही है, किन रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है और आखिरकार जो पानी हम पीते हैं वो वास्तव में सुरक्षित है भी या नहीं।
अभी तक पानी को कीटाणुमुक्त करने के लिए, अधिकतर वाटर प्यूरीफायर्स में क्लोरीन नामक रसायन को एक किफायती, प्रभावी और स्वीकार्य कीटाणुनाशक के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। मगर विचारणीय क्लोरीन का उपयोग नहीं बल्कि क्लोरीन के उप-उत्पाद हैं, जिन्हें क्लोरीनेटेड हाइड्रोकार्बन्स या ट्राईहैलोमीथेन के नाम से भी जाना जाता है। स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार इनमें से कई म्यूटेजेनिक और या कार्सिनोजेनिक हैं। कुछ वाटर प्यूरीफायर टीसीसीए जनरेटेड क्लोरीन का इस्तेमाल करते हैं। यह क्लोरीन लम्बे समय तक पेयजल को कीटाणुमुक्त करने वाले प्राथमिक कीटाणुनाशक की तरह प्रयोग में लाये जाने हेतु इन्वार्यरमेन्टल प्रोटेक्शन एजेन्सी (ईपीए) द्वारा मान्य नहीं है। इस रसायन का इस्तेमाल अधिकतर स्वीमिंग पूल्स और जकूजी के पानी को कीटाणुमुक्त करने के लिए किया जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार तो भारत में वर्ष 2010 तक जल शुद्धिकरण में जहरीली गैस क्लोरीन का प्रयोग बंद कर दिया जाना था। विकसित देशों में यह पांच साल पहले ही बंद कर दिया गया था। क्‍लोरीन पानी में मिलाने से माइक्रो बैक्टीरिया एवं कैलीफाम बैक्टीरिया तुरंत मर जाते हैं। दूसरी ओर क्लोरीन का जल में घोला जाना गॉल ब्लेडर में कैंसर जैसी बीमारियां भी परोस रहा है। यमुना जल में अनेक अमोनियम कंटेंट क्लोरीन से मिलकर तमाम तरह के क्लोराइड सल्फेट एवं बाई प्रोडक्ट पैदा कर रही है। क्लोरीन टरबिटी, सस्पेंडेंड मैट्स एवं आर्गेनिक मैटल आदि पर पूरी तरह प्रभावकारी नहीं है। क्लोरीन से शोधित होकर पाइप लाइन में जाने वाले पानी के बैक्टीरिया इनमें जमा हो जाते हैं।

वर्षों से क्लोरीनीकृत जल के जोखिमों के बारे में से इस विषय के विशेषज्ञ क्या कहते हैं-
वे लोग जो क्लोरीनीकृत पेयजल पीते हैं उनमें कैंसर होने का जोखिम 93 प्रतिशत अधिक होता है बनिस्बत उनके जिनके पानी में क्लोरीन नहीं है।
- डॉ जे एम प्राइज
अथेरोस्केलेरोसिस और उसके परिणामस्वरूप हार्ट अटैक और स्ट्रोक्स का कारण कोई और नहीं वह क्लोरीन ही है जो हमारे पेयजल में उपस्थित होता है।
- साइंस न्यूज वोल्यूम 130 जेनेट रेलोफ
क्लोरीनयुक्त पानी आपकी सेहत को खोखला कर सकता है
- डॉ एन डब्ल्यू वाकर, डीसी
क्लोरीन आधुनिक समय का सबसे बड़ा अपाहिज करने वाला और हत्यारा कारक है। यह एक बीमारी से बचाता है तो दूसरी को पैदा करता है। दो दशक पूर्व 1904 में जब से हमने पेयजल का क्लोरीनीकरण शुरू किया तभी से दिल की बीमारियां, कैंसर और असमय बुढ़ापे जैसी बीमारियां पनपने लगीं।
- यूएसकाउन्सिल आफ इन्वायरमेन्टल क्वालिटी
कैसे नुकसानदेह है क्लोरीन ?
भारत में सबसे ज्यादा लोग जलजनित बीमारियों के शिकार होते हैं। जलजनित रोगों की मुख्य वजह उसमें पाए जाने वाले कोलीफार्म बैक्टीरिया होता है। इसको नष्ट करने के लिए पानी में क्लोरीन मिलाया जाता है। पानी में क्लोरीन की स्थिति की जांच टेल पर पहुंचने वाले पानी के जरिए की जाती है। टेल पर ओटी टेस्ट पॉजिटिव मिलने पर ही माना जाता है कि सही मात्रा में क्लोरीन मिली है। टेल तक क्लोरीनयुक्त पानी पहुंचाने के लिए जल संस्थानों में जगह-जगह क्लोरीन मिलाने वाले डोजर लगा रखे हैं। सबसे पहले निर्धारित मात्रा में क्लोरीन जल संस्थान में मिल जाती है। उसके बाद हर मुहल्ले में जलापूर्ति करने वाले पंपों से भी क्लोरीन मिलाकर आगे भेजा जाता है। पाइपलाइन पुरानी होने के कारण जगह-जगह उसमें गंदगी मिलती है। इसके लिए निर्धारित मात्रा में कईं गुना ज्यादा क्लोरीन पानी में मिलाई जा रही है।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के गैस्ट्रोइंटेराटिस विभाग के डॉ. सुनीत कुमार शुक्ला ने बताया कि पानी में कैल्शियम हाइपो क्लोराइड मिलाई जाती है जो नुकसानदेह साबित होता है। यह शरीर के ऑक्सीजन के फ्री रेडिकल को समाप्त करता है। पानी में कैल्शियम हाइपो क्लोराइड की वजह से पानी रखने वाले बर्तनों में कैल्शियम की सफेद पर्त जमा हो जाती है। इसकी वजह से जलापूर्ति के पाइपों में कैल्शियम के कण जमा हो जाते हैं। 
इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के डॉ. अरविंद सिंह का कहना है कि कैल्शियम हाइपो क्लोराइड एक साल्ट है और उसका साइड इफेक्ट होता है। उसकी अधिक मात्रा गैस्ट्रिक म्युकोसा (पेट की लाइनों) को एरिटेट करता है। इससे एसिड का स्राव बढ़ जाता है। कम सोना, फास्ट फूड का इस्तेमाल और अव्यवस्थित खान-पान जैसे कारकों के चलते आदमी पहले से ही संवेदनशील हैं। ऐसे में एसिड के बढ़ने से गैस बनने, अल्सर, बालों के झड़ने, त्वचा के बेरौनक होने के मामले सामने आ रहे हैं।
पानी पीने से त्वचा में नमीं रहती है, ब्यूटीशियन की यह सलाह बेमानी है। ज्यादा पानी पीने से अब त्वचा बेरौनक हो रही है। पानी मे झौंकी जाने वाली क्लोरीन के चलते बाल झड़ने और गैस्ट्रिक की समस्या पैदा हो रही है। क्लोरीन पानी के कोलीफार्म बैक्टीरिया को भी नष्ट करता है लेकिन उसका अधिक इस्तेमाल सेहत के लिए नुकसानदेह भी है।
- क्लोरीन युक्त पानी में बहुत ज्यादा देर तैरने या नहाने से मूत्राशय के कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।
- स्पेन के वैज्ञानिकों के एक दल ने पाया है कि इस कैंसर का कारण रसायन ट्राईहैलोमिथेन (टीएचएम) है जो त्वचा के माध्यम से शरीर के भीतर प्रवेश कर सकता है। टीएचएम पानी में क्लोरीन मिलाने पर बनता है।
- डेली मेल के रिपोर्ट अनुसार, क्लोरीन युक्त पानी में जो लोग बहुत ज्यादा देर तक तैरते हैं अथवा नहाते हैं वे वास्तव में बहुत ज्यादा टीएचएम लेते हैं। इससे उनमें कैंसर होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है।
- इस अनुसंधान के लिए अनुसंधानकर्ताओं ने 1270 लोगों पर अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि जो लोग पानी से होने वाली परेशानियों से बचने के लिए तो बोतल बंद पानी पीते हैं, लेकिन नहाते वक्त अथवा तैरते वक्त क्लोरीन युक्त पानी की परवाह नहीं करते उन्हें टीएचएम के सम्पर्क आने का खतरा रहता है।
- स्पेन के कैस्टेला ल माशा में स्थित ‘सेंटर फॉर रिसर्च इन एनवायरमेंट एपीडेमिओलॉजी’ के डॉक्टर जीमा कैस्टाओ-विन्याल्स का कहना है कि ज्यादा पैसे वाले लोग अथवा शिक्षित लोग सोचते हैं कि वे बोतल बंद पानी पी कर पानी से होने वाली परेशानियों से बच जाते हैं, लेकिन वे नहीं जानते कि क्लोरीन युक्त पानी में लंबे वक्त तक तैरने और नहाने से वे ज्यादा मात्रा में टीएचएम अपने भीतर लेते हैं।

पानी में क्लोरीन कम होने के प्रभाव -
कम मात्रा डालने से बैक्टीरिया नहीं मरते और कई तरह की जलीय अशुद्धि‍यों से सेहत को नुक्‍सान होने का खतरा रहता है।
पानी में क्लोरीन ज्‍यादा होने के दुष्‍प्रभाव -
•  ज्यादा मात्रा होने से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उल्टियां हो सकती हैं, फेफड़े खराब हो सकते हैं पेट संबंधी वि‍कार भी हो सकते हैं।
•  पानी में कई बार अधिक मात्रा में क्लोरीन मिलाने से लोग उल्टी दस्त की गिरफ्त में आ जाते हैं।
•  फेफड़ों को खराब करने में पानी में क्लोरीन की अधिक मात्रा सर्वाधिक जिम्मेदार है।
•  क्लोरीनीकृत जल पीने वालों में भोजन नली, मलाशय, सीने और गले के कैंसर की घटनाएं ज्यादा पाई गई हैं।
•  क्लोरीन का प्रयोग विश्व भर में सार्वजनिक पेयजल संयत्रों में क्लोरीन का उपयोग नुक्सानदायक कीटाणुओं कोलीफार्म पर एक जहरीले रसायन के रूप में किया जाता है, जिससे मानव शरीर दुष्प्रभाव डालने वाली जलजनित बीमारियों से बच सके। लेकिन बहुतेरे वैज्ञानिक शोध यह कहते हैं कि पेयजल में क्लोरीन का होना बहुतेरे दीर्घकालीन दुष्प्रभाव डालता हैं, बनिस्बत पानी को किटाणुमुक्त करने के।
•  नैशनल कैंसर इंस्टीटयूट द्वारा प्रकाशित जरनल के अनुसार - लम्बे समय तक क्लोरीनीकृत जल पीने से किसी व्यक्ति में ब्लाडर कैंसर के विकसित होने का जोखिम 80 प्रतिशत तक बढ जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार समस्या क्लोरीन नहीं, समस्या है क्लोरीन की पानी में पाये जाने वाले प्राकृतिक तत्वों और प्रदूषकों से होने वाली प्रतिक्रियाओं से। इसके परिणामस्वरूप रसायनों का वह समूह बनता है जिनसे मूत्राशय का कैंसर हो सकता है।
क्लोरीनीकृत जल के उप-उत्पादों से मूत्राशय का कैंसर, उदर, फेफड़ों, मलाशय, दिल की बीमारियां, धमनियों का सख्त होना, एनीमिया, उच्च रक्तचाप और एलर्जी आदि बीमारियां जन्म ले सकती हैं।
•  यह प्रमाण भी मिले हैं कि क्लोरीन हमारी शरीर में प्रोटीन को नष्ट कर सकती है, जिससे त्वचा और बालों पर दुष्प्रभाव पड़ते हैं। पानी में क्लोरीन होने से क्लोरोमाईन्स (क्लोरीन के उपचार के बाद पैदा होने वाले किटाणु) बनते हैं, जिससे स्वाद और गंध जैसी समस्याएं जन्म लेसकती हैं।
  क्लोरीन गैस की अधिकता और निरंतरता सीधे फेफड़ों फाड़ती है, समूचे श्वसन तंत्र को जख्मी कर देती है, इसके कहर से आंखे भी अछूती नहीं रहतीं।
•  क्लोरीन से जल शोधन धीमे जहर को लेने की तरह है।
कोटा के एक जलापूर्ति‍ करने वाले संयत्र से प्रति 10 लाख लीटर पानी में 2 किलो से लेकर 4 किलो तक क्लोरीन गैस डाली जाती थी। वह भी अंदाज से। इस प्रक्रिया में प्लांट के चैंबर्स पर लगे लोहे के गेट और चद्दरें तक गल गई। यहां तक कि क्लोरीन के असर से एक स्वच्छ जलाशय की छत तक खत्म हो गई। इस मामले में कोटा मेडिकल कॉलेज के चेस्ट एवं टीबी रोग के विभागाध्यक्ष डॉ. बीएस वर्मा का कहना है - फेफड़ों को खराब करने में पानी के साथ क्लोरीन की अधिक मात्रा सर्वाधिक जिम्मेदार है।  
पहुंच मार्ग भी नि‍यंत्रि‍त करता है क्लोरीन की मात्रा - यहां पानी में क्लोरीन की मात्रा 2 से 4 पीपीएम तक डाली जाती थी जो कि‍ अंतिम छोर के इलाकों में पानी के पहुंचने तक क्लोरीन की मात्रा स्वत: ही कम हो जाती थी।
पानी में कलोरीन का मात्रा कैसे जाने : पानी में क्लोरीन की मात्रा को जांचने के लिए क्लोरोस्कोप का प्रयोग होता है। इससे पानी में क्लोरीन की मात्रा कितनी कम और कितनी अधिक है इसका पता आसानी से चल जाता है। आईपीएच विभाग पानी की सप्लाई देने से पहले उसमें क्लोरीन मिलाता है। स्वास्थ्य महकमा भी अपने स्तर पर प्राकृतिक जलस्रोतों में क्लोरीन डालता है।
पानी को अशुद्धि‍यों  से मुक्‍त करने के उपाय :
पानी को अशुद्धि‍यों से और कीटाणुओं से मुक्‍त करने के लि‍ये सर्वाधि‍क सरल उपाय पानी को उबालकर पीना है। 
 कई देशों में पानी को बैक्टीरियामुक्त करने के लिए क्लोरीन का प्रयोग प्रतिबंधित कर दिया गया है। अब वहां अल्ट्रावॉयलेट किरणों से पानी साफ करने की तकनीक अपनाई जा रही है। इसके अलावा सोडियम हाइड्रोक्लोराइट से पानी को साफ किया जाता है।
आयोडीन मि‍लाकर भी पानी को पेयजल हेतु तैयार कि‍या जाता है पर जि‍न्‍हें एलर्जी है, गर्भवती महि‍लाओं और थायराईड की समस्‍या से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ि‍तयों को इस तरीके का इस्‍तेमाल डॉक्‍टर की सलाह पर करना चाहि‍ये।

उपभोक्‍ता संरक्षण कार्यकर्ता और द हैल्‍थी यू फाउण्‍डेशन के संस्‍थापक इंडीब्‍लॉगर बेजान मि‍श्रा क्‍लोरीन वाले प्‍यूरीफायर्स के खतरों के खि‍लाफ कैम्‍पेन चला रहे हैं। अधि‍क जानकारी हेतु हेल्‍पलाईन नं 1800-11-4424 पर संपर्क कि‍या जा सकता है।
इस सूचनालेख हेतु इन लिन्‍क्‍स की सहायता ली गई*
http://cricketwise.blogspot.com/2011/05/is-your-drinking-water-safe-many.html
http://www.hindi.indiawaterportal.org/content नुकसानदेह-है-क्लोरीन

Saturday 20 August 2011

अन्‍ना हजारे के आगे ....


चित्र http://wethepeople-barakvalley.com/ से साभार

मुझे भोपाल से बनारस जाना है। 8 दिन पहले जब रिजर्वेंशन करवाया, 96 वेटिंग थी। आज जब ट्रेन में सवार हुआ तो वेटिंग 76 तक पहुंची थी। जैसे तैसे आरक्षित बोगी में जगह मिली। एक घण्टा हो गया है, एक मानुष ने तरस खाकर मुझे टिकाने की जगह दे दी।

टीटी आया, उसके साथ ट्रेन में घुसते से ही कुछ लोग मानमुनौव्वल करते चल रहे थे। प्लीज... देख लीजिए.... लम्बा सफर है... अकेले होते तो कोई बात नहीं थी फैमिली है.... एक दामादनुमा आदमी बोला-माँजी बीमार है जरा..... बस एक ही सीट दे दीजिए हम दोनों एडजस्ट कर लेंगे... इस तरह के वाक्यों का हुजूम टीटी के प्रभामण्डल के चारों ओर मंडरा रहा था। वो जरा भी कदम आगे-पीछे करता, आगे-पीछे मुड़ता ये वाक्य उसके साथ ही खिसकते...। टीटी इन वाक्यों से निरासक्त श्रवणेन्द्रिय का स्तंभन कर अपनी आंखों की सारी ऊर्जा उन प्राणियों के चेहरे, और भावभंगिमाओं के विवेचन में लगा रहा था जो काम के दिख रहे थे। कुछ ऐसे लोग जो बारगेन-मोलभाव में दिलचस्पी रखते थे वो उन्हें मक्खियों की तरह फटकार रहा था। चारों ओर मांग-ही-मांग सूखी धरती थी और पूर्ति के बादलों के छींटे, कैसे, किस पर डालने हैं यह टीटी की कुशलता थी।

भोपाल से बनारस का सफर न्यूनतम 22 23 घंटे या भारतीय रेल का अपना उन्मुक्त समय लेता है। कई लोग अपने को परखने के लिए संकल्प लेते हैं कि बिना आरक्षण के ही वो लम्बी दूरी, लम्बे समय की यात्रा करके दिखायेंगे पर क्या ये उतना ही आसान होता है, जितना संकल्प लेना? बोगी में मनुष्यों की भौतिक, रासायनिक, मनोवैज्ञानिक गतिविधियां आपके संकल्प का पल पल इम्तिहान लेती हैं।

अब भोपाल से ट्रन में बैठे हुए मुझे ढाई घंटे हो चुके। भीड़ में सीट से उठने का मतलब है आपने सीट पर से अधिकार खो दिया। बोगी का अपना वायुमण्डल होता, दबाव होते हैं है। अगल-बगल सामने पीछे से लोग भिंच जाने, कुचले जाने की हद तक दबाव बनाते हैं। पानगुटखाबीड़ी, पसीने-खाने-पीने, सिर-बदन पर चुपड़े तेल, डियो स्प्रे इत्रफुलेल, मोजों की बदबू... इन सबकी मिश्रित गंध से आपकी नाक को नहीं सूझता कि क्या करे पर चलने पर बोगी के हिलने के साथ ही आपके मूलाधार या नाभि के आस पास से गले की तरफ लावे का ज्वार भाटा सा उठता और गिरता है। मुद्रा कोई भी हो, यदि जगह मिल जाये, आपको पुट्ठों के बल ही बैठना होता है। कभी दाएं पुट्ठे पर पूरे शरीर का भार दिये, कभी बायें पुट्ठे पर, अगर दोनों पर समान भार डालने का विकल्प है तो कमर अकड़ सकती है। लेकिन सर्वाधिक परेशानी कानों और आंखों को होती है... आसपास बैठे सारे यात्रियों के अन्दरूनी-बाहरी किस्से-कहानियां गाने-रोने-धाने, चाहे-अनचाहे सुनने ही पड़ते हैं। इसी तरह आंखों से उन यात्रियों की ठसक झेलनी ही है जिनका रिजर्वेशन कन्फर्म है, जो दिन दहाड़े स्लीपर सीट नहीं बिछाकर आप पर अहसान किये हुए हैं। सीट पर बैठे हुए आपकी लटकती टांगें, पिचके पुट्ठे, अकड़ी कमर, नाक, आंख, कान सब दुविधा में रहते हैं। इसके साथ ही दिमाग में पसरने की गं्रथियां पसरने लगती हैं। कितनी ही भीड़ हो आदमी वो जगहें ढूंढने लगता हैं..जहां सिकुड़ी या एक ही स्थिति में फंसी टांगे घुसेड़नी या टिकानी हैं। मगर इन जगहों के मिल जाने पर... व्यक्ति में वह गं्रथि जिससे पसरने की वृत्ति वाले हार्मोन का स्राव होता है, ये स्राव बड़े ही वेग से होने लगता है। आदमी का सिर पीछे सीट पर टिक जाता है, कमर मुड़ जाती है, टांगे फैलने लगती है... कहने का मतलब ये कि अब वो चाहता है कि किसी तरह शवआसन लगाने का मौका मिले। कई पतले लोगों को मैंने इन लक्षणों के चरम पर लगेज रखने वाले रैक पर पसरा पाया। वो महानतम योगी होते हैं। 8 इंच चैड़ी जगह पर वो दायीं-बायीं-उध्र्व-अधो किसी भी ओर चित कर शरीर को फैला सकते हैं।

मुझे अब पौने चार घंटे हो चले और अब मस्तिष्क में उस हार्मोन के स्राव का वेग बहुत बढ़ गया जिससे शरीर में फैलने-पसरने की वृत्ति गतिवान होती है। मुझे भी सफेद पेंटशर्ट, काले कोट, पीतल के बिल्ले वाले टीटी की याद आई। इकलौता ट्राॅलीबेग उठाकर टीटी की तलाश में निकले तो वो अगले स्टेशन पर एक डिब्बे के बाहर निकला दिखा। मैंने वहां पहुंचकर कुछ भी नहीं किया। फैलने पसरने वाले हार्मोन ने मेरे चेहरे पर सीट की मांग के सारे भाव ला दिये थे। मेरा पर्स निकल-निकल कर हाथों में खेलने लगा, टीटी ने मुझे उपकृत करने के लिए सर्वथा उपयुक्त पाया। अभी तो मात्र चार घंटे हुए थे और मेरी हालत कितनी पतली थी ये मैं ही जानता हूं या बस मैं। 400 रू में वेटिंग टिकिट खरीदा था, टीटी ने हजार रू. कहा, मैंने कहा कि आप ही पसारनहार हैं... कलियुग है पर हे कलिराज कृपा.. 800 रू में कृपा की गई। टीटी ने कहा थर्ड एसी में सीट नं. 23 पर टिक जाओ, वो व्यक्ति आधे घंटे बाद आने वाले स्टेशन पर उतर जायेगा। मैंने प्रभु के वचन का तथास्तु भाव से तुरन्त पालन किया। आज तक ऐसी में यात्रा नहीं की थी... पहले तो ए.सी. यान का इंटीरियर देखा, साधारण स्लीपर कोच की सीटें थीं... बस परदे और लगे थे... आध घंटे बैठने के बाद ही दम घुटता सा लगा.. लगा कि एक बंद जगह पर सैकड़ों लोगों की सांसें हवा में तैर रही हैं... उनमें तरह तरह के कीटाणु थे, गैसें थीं, वायु दाब थे.. कुछ देर बाद ही 23 नं. सीट खाली हो गई और मैंने जीवन की पहली सर्वाधिक महंगी यात्रा का पहला सुविधाभरा खालिस्थान देखा। एसी बोगी में घुसते ही सांझ हो गई थी, ऊंघ भरे खयाल आने लगे। मैं बैठा, फिर लेट कर देखा.. और टीटी को आता देख फिर अधलेटा सा हो गया...टीटी ने जैसे लाड लडाते हुए कहा - आराम से लेट जाओ। मैंने खुद से कहा देखा 800 का कमाल, लोरी भी सुनने को मिलेगी। लाड में आते हुए मैं लेट गया। यात्रा में वैसे ही उपवास का मन करता है। गाड़ी रूकी तो शीशे से देखा कुछ जवान लड़के लड़कियां, ”मेरी भी वही तमन्ना है, जो सब कहता अन्ना है।“, अन्ना हजारे संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं... नारों के साथ ट्रेन में चढ़े। पता नहीं चला, वो चढ़े कहां होंगे? जनरल बोगी ठसाठस भरी थी। आरक्षित शयनयानों में भी पर्याप्त भीड़ थी। कुछ और करना था नहीं, पर क्या ”सोचना“ कुछ करना होता है, तो मैं ऊंघते हुए 5 घंटे की असुविधापूर्ण यात्रा की ताजी-ताजी यादों में झपकी में झूलने लगा।
 
मैंने देखा, एक लड़की मेरे सामने वाली सीट पर आकर लेट गई। उसने कोई अंग्रेजी मैगजीन निकाली और उसे चेहरे पर लेकर फैल सी गई, उसने करवट ली और मैग्जीन नीचे जा गिरी। पता नहीं मेरी बाहें इतनी लंबी कैसे हो गईं, मैंने मैगजीन उठाकर उस लड़की को दे दी। वो लड़की धन्यवाद बोली। उसने पानी की बोतल उठाई और ढक्कन खोलने को ही थी कि पाया घूंट भर ही पानी है। ट्रेन अपनी ही रफ्तार से चली जा रही थी, ए.सी. में ट्रेन की रफ्तार का भी पता नहीं चलता।  मैंने उसकी प्यास को महसूस किया और उसकी ओर अपनी बोतल बढ़ा दी। उसने फिर थेंक्स कहा। उसने जिस तरह अपनी मैग्जीन को उल्टा पलटा, लगा वो उसे 7 बार पढ़ चुकी है। उसे नींद नहीं आ रही थी। उसने अबकी मेरी तरफ करवट ली और बोली - क्या आप मुझे वो जे कृष्णमूर्ति की बुक दे सकते हैं? मैं ज्यादा बातचीत के मूड में नहीं था मैंने किताब उठाकर उसे दे दी। उसने किताब को फिर मुंह पर फैला लिया और शायद वो डूब गई। 
वो फिर पलटी और बोली - आपको नहीं लगता जनलोकपाल बिल से जैसा कि अन्ना कह रहे हैं 65-75 प्रतिशत अन्तर आयेगा व्यवस्था में? 
मैंने कहा - लोग 65 वर्ष बाद फिर जागे हैं।
वो- क्या रिश्वत लेना ही भ्रष्टाचार है, या देना भी?
मैं- मैंने तो अभी 800/- देकर टिकिट खरीदा है।
वो- अगर आप ईमानदार होते तो शयनयान में ही भीड़ के बीच सफर करते।
मैं- कैसे? सिकुड़ी टांगों, पिचके पुट्ठों, अवसाद-विशाद से भरे लोगों की अपानवायु, शौचालय की बदबू, उबकाईयों के साथ, वहां तो उल्टी करने की जगह भी नहीं थी? सफर ना करता तो 7वीं नौकरी की तलाश में चौथा इंटरव्यू छूट जाता। वैसे भी अगर टीटी ना लेता, तो मैं उसे कैसे देता? ठीक है, मैं अपनी धुली चादर बिछाकर भिखारियों के बीच ही बिछाकर शौचालय के पास ही लेट जाता, पर अगर आप होतीं...
वो लड़की थोड़ी देर चुप रही।
वो- तो क्या जनलोकपाल भ्रष्टाचार के बाद की बीमारियों के समाधान की कोशिश है?
मैं- हां, जरूर। ”भ्रष्टाचार के पहले“ के बारे में भी तय होना चाहिए। वेटिंग नहीं होनी चाहिए, या तो टिकिट रिजर्वेशन होना चाहिए या गाड़ी में बैठने ही ना दिया जाय। वेटिंग ही भ्रष्टाचार है। अंधेर करने की जरूरत नहीं... बस जितनी हो सके देर कीजिए, आदमी खत्म हो जाता है। वेटिंग में धंुधलापन है, अनिश्चितता है...असुविधा है, डर है। ”तय होना“ ही नियम और कानून है, व्यवस्था है। संविधान व्यवस्था की एक कोशिश है। मनुष्य रोज बदलता है, व्यवस्था भी व्यक्ति के साथ ही रोज बदलनी चाहिए, संविधान नदी की तरह होना चाहिए.... कुंए या तालाब की तरह नहीं। अंधों के लिए वेद कुरान ही काफी हैं... संविधान को एक धार्मिक ग्रंथ बनाने की क्या जरूरत है। संविधान बदलना वैसे ही होना चाहिए जैसे हम दूसरे दिन कपड़े बदलते हैं, क्योंकि वो गंदे हो जाते हैं। नये अपराधियों के लिए पुराने कानूनों की क्या जरूरत? कसाब नया आदमी है।
 
मैं प्रलाप सा करने लगा था - 200 रूपये चुराये वो चोर, 5 साल का इंतजार, एक साल की सजा। जो 2000 करोड़ चुराये उसके लिए जेल में महल के इंतजाम, और बरस दो बरस में जनता सब भूल जाती है। एनडीतिवारी, कई सारे कातिल मुसलमानगुंडे, कई सारे हत्यारे हिन्दू साधु  संसद में  बैठते हैं... स्वर्णमन्दिर परिसर में आतंकवादियों को शहीद बताती तस्वीरें, कश्मीरी अलगाववादियों से पाकिस्तानी मंत्री को मिलाना, इन्हें क्यो रखा है? संविधान अपडेट करने के लिए? ये कानून बाद में बनायेंगे, उनके तोड़ पहले निकालेंगे।

अचानक टीटी ने झिंझोड़ा, मुझे अचकचाकर उठ बैठना पड़ा। मैंने सेलफोन देखा, रात के 2 बज रहे थे। टीटी बोला - आप एस3 में 37 पर चले जाईये। मैंने बोझिल तनमन से अपना ट्राली बैग उठाया और एस3, 37 तलाशने लगा। वहां एक मोटा सा आदमी घर्राटे मारते हुए सो रहा था, मुझे बुल्लेशाह की काफी याद आयी... जागो... घुर्राटे मार कर मत सोओ, मौत सर पर खड़ी है।
 
मैंने फिर एयरपिलो सिर के नीचे रखा, ट्रालीबैग में चेन बांधी, और पिछली झपकी की दृश्यावली को याद करते हुए, ऊंघने लगा... मैंने पिछले 18 घंटे से कुछ भी नहीं खाया था.... मुझे लगा मैं अन्ना के साथ हूं। मुझे वो नारा साफ-साफ याद आया ”मेरी भी वही तमन्ना है, जो सब कहता अन्ना है।“ मैंने खुद से कहा- ”सब“ क्या होता है, कुछ दिन और देखते हैं। संसार तो हमेशा ही अधूरा होता है, उसमें सुधार की गंुजाईश बनी रहती है, या नदी बहती है। कभी भी ठहरे पानी की सड़ाध झेलने की क्‍या जरूरत है।

Thursday 18 August 2011

शुक्र मनाने की वजह


शुक्र मनाओ
कि आज सुबह सुबह
बिना कोई गोली-चूरन लिये
भली-भांति पेट साफ हो गया।

शुक्र मनाओ
कि कोई नौकरी या धंधा है
और तुम्हें पहुंचना है वक्त पर
नहीं सोचना है कि
कि सारा दिन घर पर क्या करना है।

शुक्र मनाओ
घर से निकले तो टूव्हीलर पंचर नहीं हुआ
पंचर हुआ भी तो
एक आध किलोमीटर पर ही पंचर बनाने वाला मिल गया
और उसने तुम्हारी लाचारी के ज्यादा रूपये नहीं लिये।

शुक्र मनाओ
सड़क पर पीछे से किसी 4 व्हीलर ने नहीं ठोका।
गड्ढो से सकुशल निकल गये।
किसी गड्ढे में नहीं गिरे,
गिरे भी तो
नहीं गिरा, तुम्हारे ही ऊपर, तुम्हारा टूव्हीलर
और तुम्हारा टूव्हीलर तुम्हारे ही ऊपर गिर भी पड़ा तो
पीछे से आती बस तुम्हें,
तुम्हारे टूव्हीलर सहित रौंदती नहीं चली गई।

शुक्र मनाओ
सड़क पर धूल धुआं गड्ढे और ट्रेफिक के बीच
बिना हेलमेट, मुंह पर कपड़ा लपेट कर चलते हुए
किसी पुलिसिये ने नहीं रोका
तुम्हारी जेब को नहीं लगा
दो चार सौ का धोखा


शुक्र मनाओ
दफ्तर या धंधे पर
रोज की बोरियतभरी जिन्दगी की
खुन्नस और चिड़चिड़ापन नहीं भड़का
तुम्हारी नौकरी बची रही।
तुम्हारा धंधा चलता रहा।

शुक्र मनाओ
जिन्दगी के चार पहर और
जैसे तैसे कट गये।

शुक्र मनाओ
जब नौकरी धंधे से लौटे
तो तुम्हारी बीवी भागी नहीं
घर पर ही मिली
बच्चे कुछ नया नहीं सीख रहे थे तो क्या हुआ
किताबों से देख देख कर
कॉपि‍यां तो भर रहे थे।

शुक्र मनाओ
मां का कान नहीं बह रहा
बाप की डायबिटीज कंट्रोल में है
तुम्हारा अपना पेट
नई दवाईयों से संतुष्ट है
बीवी का पीठ दर्द; बाम से ही ठीक हो जाता है

शुक्र मनाओ
पड़ोसी नहीं खरीद पाया है कार
और वो जगह अभी भी खाली है जिस पर
तुम खड़ी किया करोगे वो कार
जो पिछले 10 बरस से नहीं आई।

शुक्र मनाओ
इसलिए नहीं कि
कोई भगवान या खुदा
"होता है" या "नहीं होता है"

शुक्र मनाओ
बस इसलिए कि
तुम शहर में हो
और सपरिवार सांस ले पा रहे हो
हजारों बीमारियों सहित।

Saturday 6 August 2011

मैं चल भी सकता हूँ।

आज
पुराने ओमपुरी के चेहरे से भी ज्यादा
कुरूप है

कल की
कोई कल्पना नहीं है।
कल की आशंकाएं हैं।

क्योंकि पंख ना हों,
पंखों में जान ना हो,
तो गिरता है आदमी।

कल के डर से
मेरे पंख गिर गये हैं
इसलिए
मेरा आज
पुराने ओमपुरी के चेहरे से भी ज्यादा
कुरूप है

क्या मुझे किसी भी कल के लिए
अमर पंख चाहिए ?
या
मुझे याद करना चाहिए
कि मैं चल भी सकता हूँ।
एक उम्र तक
दौड़ भी सकता हूँ।