Wednesday 6 April 2011

आसमानों पे कोई जिन्दा है

अमजद-इस्‍लाम-अमजद की तीन गज़लें



भीड़ में इक अजनबी का सामना अच्छा लगा
सब से छुपकर वो किसी का देखना अच्छा लगा

सुरमई आंखों के नीचे फूल से खिलने लगे
कहते कहते फिर किसी का सोचना अच्छा लगा

बात तो कुछ भी नहीं थी लेकिन उसका एकदम
हाथ को होंठों पे रख कर रोकना अच्छा लगा

चाय में चीनी मिलाना उस घड़ी भाया बहुत
जेर ए लब वो मुस्कुराता शुक्रिया अच्छा लगा

दिल में कितने अहद बंधे थे भुलाने के उसे
वो मिला तो सब इरादे तोड़ना अच्छा लगा

उस अदा ओ’ जान को ‘अमजद’ मैं बुरा कैसे कहूं
जब भी आया सामने वो बेवफा अच्छा लगा









चुपके चुपके असर करता है
इश्क कैंसर की तरह बढ़ता है

जब कोई जी ना सके मर जाये,
आपका नाम बेबस लेता है

कौन सुनता है किसी की विपदा
सब के माथे पे यही किस्सा है

कोई डरता है भरी महफिल में
कोई तन्हाई में हंस पड़ता है

यही जन्नत है यही दोजख है
और देखो तो, यही दुनिया है

सब की किस्मत में फना है जब तक
आसमानों पे कोई जिन्दा है

वो खुदा है तो जमीं पर आये
हश्र का दिन तो यहां बरपा है

सांस रोके हुए बैठे हैं अमजद
वक्त दुश्मन की तरह चलता है

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चेहरे पे मेरे जुल्फों को, फैलाओ किसी दिन
क्या रोज गरजते हो, बरस जाओ किसी दिन

राजों की तरह उतरो मेरे दिल में किसी शब
दस्तक पे मेरे हाथ की खुल जाओ किसी दिन

पेड़ों की तरह हुस्न की बारिश में नहा लूं
बादल की तरह झूम के घिर आओ किसी दिन

खुश्बू की तरह गुजरो मेरे दिल की गली से
फूलों की तरह मुझ पे बिखर जाओ किसी दिन

फिर हाथ को खैरात मिले बंद-ए-कबा की
फिर लुत्फ-ए-शब-ए-वस्ल को दोहराओ किसी दिन

गुजरें जो मेरे घर से तो रूक जायें सितारे
इस तरह मेरी रात को चमकाओ किसी दिन

मैं अपनी हर इक सांस उसी रात को दे दूं
सर रख के मेरे सीने पे सो जाओ किसी दिन

5 comments:

नीरज गोस्वामी said...

वाह वाह वाह...बेहतरीन ...तीनो ग़ज़लें एक से बढ़ कर एक...अमजद साहब का कलाम पढ़ कर बहुत अच्छा लगा... ऐसा पुर सुकून कलाम हम तक पहुँचाने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया

नीरज

रश्मि प्रभा... said...

दिल में कितने अहद बंधे थे भुलाने के उसे
वो मिला तो सब इरादे तोड़ना अच्छा लगा
bahut hi pyare bhaw

Apanatva said...

unhe padwane ka shukriya.........sabhee gazale ek se bad kar ek thee .

केवल राम said...

दिल में कितने अहद बंधे थे भुलाने के उसे
वो मिला तो सब इरादे तोड़ना अच्छा लगा

हर शे'र लाजबाब है ..गहरे में उतरने वाला आपका आभार

Rajeysha said...

जिन्दगी बोली -
बस इतना सा ही समय है
बोलो, जल्दी बोलो... क्या चाहते हो?

मैंने कहा -
कुछ नहीं,
बस तुम अब कहीं मत जाओ,
यहीं बैठो,
कितना ही कम समय हो,
जल्दबाजी मत करो।

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