Tuesday 26 April 2011

"अस्‍तव्‍यस्‍त कमरा"

शैल सि‍ल्‍वरस्‍टीन  की कवि‍ता 
"अस्‍तव्‍यस्‍त कमरा" 




यह जिसका भी कमरा है
क्या उसे शर्म नहीं आती ?

उसका अंडरवियर टेबल लैम्प पे टंगा है
उसकी शर्ट घुड़ी मुड़ी होकर, कुसी पर पड़ी है
और ये कुसी भी तो देखो
कितनी गंदी और अस्त व्यस्त है

उसकी डायरी फंसी हुई है
खिड़की के दरवाजे को
खुला रखने के लिए

उसका गमछा फर्श पर फैला हुआ है!
उसकी पेंट लापरवाह सी दरवाजे पर टंगी है
उसकी किताबें
अलमारी में आड़ी तिरछी सी
एक दूसरे को कचोटती सी अटकी हुई हैं

उसकी बनियान और मोजे
बदबू से सने हुए
दिवार से सटे ऊंघ रहे हैं

उसके सीलन और 

सलवटों वाले बिस्तर पर
कीड़े खाकर
एक छिपकली आराम कर रही है

यह जिसका भी कमरा है
क्या उसे शर्म नहीं आती ?
क्या ये कमरा नीरज का है?
क्या ये कमरा समीर का है?
या ये कमरा गणेश का है?
हुंह, क्या?
तुम कह रहे हो ये कमरा मेरा है?
नहीं तो!!!
हां ऐसा ही लग रहा है
तो क्या?


मूल कवि‍ता 
Messy Room 
by 
Shel Silverstein
 

Whosever room this is should be ashamed!
His underwear is hanging on the lamp.
His raincoat is there in the overstuffed chair,
And the chair is becoming quite mucky and damp.
His workbook is wedged in the window,
His sweater's been thrown on the floor.
His scarf and one ski are beneath the TV,
And his pants have been carelessly hung on the door.
His books are all jammed in the closet,
His vest has been left in the hall.
A lizard named Ed is asleep in his bed,
And his smelly old sock has been stuck to the wall.
Whosever room this is should be ashamed!
Donald or Robert or Willie or--
Huh? You say it's mine? Oh, dear,
I knew it looked familiar!

Friday 22 April 2011

पाब्‍लों नेरूदा की कवि‍ता..... कुछ उस तरह

राजेशा योज-प्रयोज :-


मैं तुमसे प्यार करता हूँ।
इसलिए,
मैं तुम्हें भूल गया हूं।

मैं वहाँ से
“जहाँ मैं तुमसे प्यार करता था ”
वहां तक पहुंच गया हूं
“कि तुम्हारी याद भी नहीं आती”

मैं तुम्हारे इंतजार में
वहां पहुंच गया हूं
जहां अब कोई इंतजार नहीं है।

मैंने खुद ही
तुम्हें अपने से दूर कर दिया है
कि तुम कि‍सी सुख में रह सको।
और मैं भटकने से बचा रहूं
... सारी बुराईयों के जंगल से।

मैं बचा रहूं.... तुम्हें जानने से
कि
मेरे लिए
तुम्हारे जुबान पर वरदान थे
या
तुम्हारे साथ के रूप में
मुझे शाप जीना था।

मैंने घाम और उमस भरी गर्मियाँ
और सारी बर्फीली सर्दियां
तुम्हें भूलाये हुए बिता दी हैं

सच
उन दिनों
जब तुम दिखती थीं
दिनों दिनों बाद
मुझे
उन दिनों की याद भी नहीं है।

मैंने
चाहकर,
तुम्हारे पते वाले लिफाफे में रखी
चैन की चाबी खो दी है।

और
मैं बड़ी आसानी से
निश्चिंत
मौत की राह पर हूं
इस झूठे अभिमान में
कि
किसी जीवन से
मुझे भले ही कुछ ना मिला हो
बस
रगों में बहती आग से
मैं जानता हूं
कि  “ प्यार क्या होता है। ”



.... पाब्‍लो नेरूदा की मूल कवि‍ता :- 
I do not love you except because I love you;
I go from loving to not loving you,
From waiting to not waiting for you
My heart moves from cold to fire.

I love you only because it's you the one I love;
I hate you deeply, and hating you
Bend to you, and the measure of my changing love for you
Is that I do not see you but love you blindly.

Maybe January light will consume
My heart with its cruel
Ray, stealing my key to true calm.

In this part of the story I am the one who
Dies, the only one, and I will die of love because I love you,
Because I love you, Love, in fire and blood.

Tuesday 19 April 2011

क्‍या सारे वक्‍त बीत जाते हैं ?

कभी-कभी ऐसा लगता है
कि वक्त बहुत कम है।

वक्त बहुत ज्यादा भी हो
तो भी
वक्त बहुत कम होता है
अगर आपने बहुत कुछ गलत कर रखा हो
आपको ढेर सारी नींद आती हो
और आपकी कोई इच्छा ना हो
कुछ भी सुधारने की।

वक्त बहुत कम होता है
जब पता चले
कि पिछले 30 बरस
बिना समझ में आये ही गुजर गये
और
बहुत घबराहट सी होती है
कि अगले 30 बरस तक भी
क्या समझ में आ जायेगा।

वक्त बहुत कम होता है
जब पता चले
ढेर सारा वक्त गुजर चुका है
उन यादों को उलटने पलटने में
जो राख ही हैं

तो चलो
अब
जबकि पता चल गया कि
वक्त बहुत कम है
तो
कोशिश करें
जाग जाने की
सपनों से बाहर आने की
बिना यह कहे
कि यह तो कल भी हो सकता है।

या तुम्हारा कोई सरोकार ही नहीं है
किसी भी वक्त से
जो गुजर गया उससे
जो गुजर रहा है, उससे या,
जो आने वाला है उससे
तुम्हें डर लगता है,
जीने से?

और
तुम नींद के बहाने
किसी मौत को महसूस करने की
कोशिश करते हो।
क्या तुम्हें पता है -
बेहोश लोगों को
मरने का भी पता नहीं चलता।

या तुम्हें
नींद में
सपनों में चलना-फिरना ही
हकीकत लगने लगा है।

Saturday 9 April 2011

आदमी से बात करना बड़ा मुश्किल है


 आदमी से बात करना बड़ा मुश्किल है
आदमी
उम्र के साथ साथ
और और
शातिर और चालाक हो जाता है
और अक्सर तो
मौत से पहले ही
मुर्दा।

रोज पत्तियां गिरती हैं
फूल, फल झड़ते हैं
खाल उतरती रहती है।
वो हमेशा
पहली कोंपल जितने
नये और ताजे रहते हैं।
 

पेड़ों से बात करना
कल जि‍तना ही आसान है।

Wednesday 6 April 2011

आसमानों पे कोई जिन्दा है

अमजद-इस्‍लाम-अमजद की तीन गज़लें



भीड़ में इक अजनबी का सामना अच्छा लगा
सब से छुपकर वो किसी का देखना अच्छा लगा

सुरमई आंखों के नीचे फूल से खिलने लगे
कहते कहते फिर किसी का सोचना अच्छा लगा

बात तो कुछ भी नहीं थी लेकिन उसका एकदम
हाथ को होंठों पे रख कर रोकना अच्छा लगा

चाय में चीनी मिलाना उस घड़ी भाया बहुत
जेर ए लब वो मुस्कुराता शुक्रिया अच्छा लगा

दिल में कितने अहद बंधे थे भुलाने के उसे
वो मिला तो सब इरादे तोड़ना अच्छा लगा

उस अदा ओ’ जान को ‘अमजद’ मैं बुरा कैसे कहूं
जब भी आया सामने वो बेवफा अच्छा लगा









चुपके चुपके असर करता है
इश्क कैंसर की तरह बढ़ता है

जब कोई जी ना सके मर जाये,
आपका नाम बेबस लेता है

कौन सुनता है किसी की विपदा
सब के माथे पे यही किस्सा है

कोई डरता है भरी महफिल में
कोई तन्हाई में हंस पड़ता है

यही जन्नत है यही दोजख है
और देखो तो, यही दुनिया है

सब की किस्मत में फना है जब तक
आसमानों पे कोई जिन्दा है

वो खुदा है तो जमीं पर आये
हश्र का दिन तो यहां बरपा है

सांस रोके हुए बैठे हैं अमजद
वक्त दुश्मन की तरह चलता है

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चेहरे पे मेरे जुल्फों को, फैलाओ किसी दिन
क्या रोज गरजते हो, बरस जाओ किसी दिन

राजों की तरह उतरो मेरे दिल में किसी शब
दस्तक पे मेरे हाथ की खुल जाओ किसी दिन

पेड़ों की तरह हुस्न की बारिश में नहा लूं
बादल की तरह झूम के घिर आओ किसी दिन

खुश्बू की तरह गुजरो मेरे दिल की गली से
फूलों की तरह मुझ पे बिखर जाओ किसी दिन

फिर हाथ को खैरात मिले बंद-ए-कबा की
फिर लुत्फ-ए-शब-ए-वस्ल को दोहराओ किसी दिन

गुजरें जो मेरे घर से तो रूक जायें सितारे
इस तरह मेरी रात को चमकाओ किसी दिन

मैं अपनी हर इक सांस उसी रात को दे दूं
सर रख के मेरे सीने पे सो जाओ किसी दिन