Monday 24 January 2011

जि‍न्‍दगी यूं ही ना गुजर जाये


मौत की ओर बढ़ते हुए
कोई कैसे सोच सकता है
किन्हीं लालिमामय होंठों का
तीखा नाजुकी भरा रसीलापन
पर
देह के रसायनों का असर देखो
मन की मौज का कहर देखो
मुझे कुछ और नजर ही नहीं आता
इन होंठो के सिवा।

मौत की ओर बढ़ते हुए
कोई कैसे मजे ले सकता है
बरसों पके हुए अभिमान के
कार, बंगला, बैंक बैलेंस
हर घड़ी प्रशस्त
ऐश-ओ-आराम के
पर मुझे अहं की मस्ती में
कुछ सूझता ही नहीं
कि इसके सिवा
जिन्दगी क्या है?

मौत की ओर बढ़ते हुए
किसी को कैसे सूझ सकते हैं नौकरी धंधे
हर बात में दलाली
हर बात से नोट उगाहने के फंदे
पर मुझे कुछ सूझता ही नहीं
नोटों की ताकत के सिवा
मैं दिन रात गर्क हूं गुलामी में
हर उस काम में
जो मुझे कभी भी अच्छा नहीं लगा
हर वो काम जिससे
जिस्म, मन और रूह कांपते हैं
हर वो काम-जिससे खीझ होती है
हर वो काम-जिसे करते हुए जी मिचलाता है
हर वो काम, जिसे बंद करके
एक उम्र बाद, आराम से मुझे
मौत का हँस के स्वागत करना है

मौत की ओर बढ़ते हुए
पता नहीं मैं इतना निश्चिंत क्यों हूं
क्यों मुझे लगता है कि
आदमी की एक हर देश में
एक औसत उम्र होती है
जबकि अखबार रोज कहते हैं
कि उन बहानों से भी मौत रोज आती है
जो हमने कभी भी ख्याल में नहीं लिये
और अचानक कभी भी...
‘‘अचानक’’ शब्द ‘मौत‘ का पर्याय ही है।

मौत की ओर बढ़ते हुए
मैं मौत से इतना बेखबर क्यों हूं
क्यों उलझा हुआ हूँ
फिल्मों में, हीरो-हीरोइनों की बातों में
चैपाटियों पर, पिज्जा बर्गर के स्वादों में
हर तरह की किताबों में
शेर ओ शायरी, कविता कहानियों में
समाज सेवा की नादानियों में

मौत की ओर बढ़ते हुए
किस डर से बचने के लिए
किस चीज को बचाने के लिए
मैं व्रतों उपवासों में फंसा हूं
तंत्रों मंत्रों को लिखते, जपते
खुद पर कई बार हँसा हूं
कि ऐसा पागलपन क्यों?
और हर सुबह मैं जपता हूं
वही मंत्र यंत्रवत।

मौत की ओर बढ़ते हुए,
मौत की बातें सोचने से,
क्या मौत नहीं आयेगी?

अचानक आये उस पल के पहले
जिसे मौत कहते हैं -
मैं बड़ा ही बेचैन हूं.... कुछ वो करने को
अहसास के जगत में
जिन्दगी भरा, जिन्दा-सा कुछ -
ताकि जिन्दगी हुई सो हुई,
मरना निरर्थक का ना हो।
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3 comments:

vandana gupta said...

मौत तो शाश्वत सत्य है …………एक बेहद उत्तम कविता।

Sunil Kumar said...

सच्चाई को वयां करती हुई सारगर्भित रचना . बहुत सुंदर .बधाई

khamosh kinare said...

a reality presented in an acceptable n brain storming poetic form... nice

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