Saturday 24 July 2010

यदि‍ आप पेस्‍ट करना नहीं जानते तो कॉपी ना करें


शहर के एक प्रतिष्ठित सभागृह में एक प्रसिद्ध धुरंधर दार्शनिक-वक्ता अपने श्रोताओं से घिरा हुआ था।
वह बोला: वह मेरी जिन्दगी के बेहतरीन साल थे जो मैंने एक ऐसी औरत की बाहों में बिताये जो कि मेरी पत्नी नहीं थी।
उस प्रसिद्ध वक्ता के इस वाक्य से सारे हॉल में सन्नाटा छा गया, लोग स्तब्ध थे।
तभी वक्ता ने अपने वाक्य में जोड़ा ”और वो थी मेरी माँ।“
चारों ओर हर्ष छा गया। हॉल दार्शनिक की उच्च नैतिकता की प्रशंसा में तालियों से गूंजने लगा।

एक सप्ताह बाद की बात है। इसी प्रसिद्ध वक्ता के एक शिष्य ने उपरोक्त रोमांचक वाक्यों से अपनी भली छवि गढ़ने के लिए, इन्हें घर में अपनी पत्नि के साथ आजमाना चाहा।

महाशय आज की शाम को दोस्तों के साथ बार में बिता कर आये थे, हल्का-हल्का सा नशा चढ़ा हुआ था, पत्नी किचन में चावल उबलने रख रही थी।

तभी बड़े दार्शनिक अंदाज में पति के मुंह से निकला - वह मेरी जिन्दगी के बेहतरीन साल थे जो मैंने एक ऐसी औरत की बाहों में बिताये जो मेरी पत्नी नहीं थी।

पत्नी ने यह सुना तो दुख और क्रोध से थर थर कांपने लगी।

पति यह वाक्य कहने के बाद पत्नि के हाव भाव देखने लगा, पर मिनिट भर के अंतराल के बाद नशे में उसे खुद याद नहीं रहा कि आगे कौन सा समापन वाक्य कहना है, या वह औरत कौन थी।
पर समय गुजरने के बाद जब पति महाशय होश में आये वो किसी अस्पताल के एक बेड पर थे। सारे शरीर पर उबलता हुआ पानी डाल देने से बने फफोलों का इलाज चल रहा था।

शिक्षा: यदि हम यह नहीं जानते कि कहां, क्या और कब पेस्ट करना है तो हमें कॉपी नहीं करना चाहिये, कम्प्यूटर पर भी ...... जिन्दगी में भी।

7 comments:

vandana gupta said...

bilkul sahi shiksha di hai.

पी के शर्मा said...

वाह वाह वाह.......
क्‍या बात है......

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सही कहा....बढ़िया उदाहरण :)

डॉ टी एस दराल said...

सही कहा । नक़ल भी अक्ल से होती है ।

Udan Tashtari said...

बेहतरीन सीख!!

दिगम्बर नासवा said...

बहुत कुछ कह गये आप ....

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

:) खरी बात!

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