Saturday 17 July 2010

फिर से गलत अनुमान था मेरा।


तुमको अपना समझ लिया था,
फिर से गलत अनुमान था मेरा।

इन्‍कार उन्‍होंने नहीं कि‍या था

बस इतना सम्मान था मेरा।

सारे सितम हँस के सहता था
ये किस पर अहसान था मेरा?

जीते-जी कभी नहीं मिला था,
हाँ! वही तो भगवान था मेरा।

बरसों पहले भूल गया था,
क्या पहला अरमान था मेरा।

रोता और भड़क जाता था,
अभी जिन्दा इंसान था मेरा।

घुड़की-गाली सुन लेता था,
अहं नहीं परवान था मेरा।

5 comments:

दिगम्बर नासवा said...

रोता और भड़क जाता था,
अभी जिन्दा इंसान था मेरा।

Aaj ke dour mein insaan ka jinda rahna bahut mushkil hota ja raha hai ... saarthak sher hai bahut hi ...

रश्मि प्रभा... said...

तुमको अपना समझ लिया था,
फिर से गलत अनुमान था मेरा।
... bahut badhiyaa

vandana gupta said...

रोता और भड़क जाता था,
अभी जिन्दा इंसान था मेरा।
बेहद उम्दा भाव्।

डॉ टी एस दराल said...

बहुत सुन्दर रचना है ।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह जी सुंदर.

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