Tuesday 15 June 2010

उस मिट्टी में सौन्दर्य की प्रवाहना सी है


मेरी काया में जो आत्मा सी है
उसके लौट आने की संभावना सी है


वो बदल ले मार्ग या सम्बंध बदल ले
वही रहेगी, जो प्रेम की भावना सी है

मैं पानी की तरह पटकता रहूंगा सर
उस पत्थर में विचित्र चाहना सी है

मैं क्यों उस मौन को नकार मान लूं
उस मौन में मेरी सराहना सी है

छानूंगा, गूंथूंगा, गढूंगा, कभी तो संवरेगी
उस मिट्टी में सौन्दर्य की प्रवाहना सी है

7 comments:

Shekhar Kumawat said...

bahut khub

दिलीप said...

bahut khoob....

दिलीप said...

waah bahut sundar gazal...

दिगम्बर नासवा said...

मेरी काया में जो आत्मा सी है
उसके लौट आने की संभावना सी है ...

गज़ाब की बात कही है ... वैसे अगर आत्मा लौट आने की संभावना भी ही तो बहुत अच्छा है ...

Apanatva said...

bahut bahut sunder abhivykti..........

nilesh mathur said...

बहुत सुन्दर!

जया पाठक श्रीनिवासन said...

bahut umda likha hai aapney...
"छानूंगा, गूंथूंगा, गढूंगा, कभी तो संवरेगी
उस मिट्टी में सौन्दर्य की प्रवाहना सी है"
saundarya ko ukerne ki takat man ki hoti hai...kala, kavita,dharm,sanskriti- sabko yahi shakti janm deti hai...iss sey badi koi taakat nahi shayad...

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