Monday 3 May 2010

रूठ गये गर तुम ही मुझसे, कहो फिर मेरी ठौर कहां है



चि‍त्रांकन : राजेशा

रूठ गये गर तुम ही मुझसे, कहो फिर मेरी ठौर कहां है

गले लगाया तुमने ही तो, मेरे जलन भरे सीने को
तेरे ही तो होंठ हैं प्यासे, मेरे सारे गम पीने को
दर्द भरी धड़कने मैं जी लूं, मुझमें इतना जोर कहां है।
रूठ गये गर तुम ही मुझसे, कहो फिर मेरी ठौर कहां है

इन रेशम केशों की छाया, जीवन की हर धूप भुलाती
इस चेहर की चंद्रप्रभा ही, दुनियां की हर रात सजाती
ये मुस्कान तेरी है सब कुछ, वर्ना कोई भोर कहां है
रूठ गये गर तुम ही मुझसे, कहो फिर मेरी ठौर कहां है

केवल एक तुम्हीं तो मेरे, जीवन का आधार प्रिये
केवल एक तुम्हीं तो मेरे, सपनों का संसार प्रिये
तुम ही मौन हुए तो मेरी, इन सांसों का शोर कहां है
रूठ गये गर तुम ही मुझसे, कहो फिर मेरी ठौर कहां है

12 comments:

kunwarji's said...

दिल ही निकाल कर रख दिया आज तो....

बहुत खूब!

कुंवर जी,

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

सुन्दर...!!

मनोज कुमार said...

सरस, सरल और रोचक भाषा में लिखा एक बहुत अच्छा गीत।

somadri said...

chitrankan ke liye rajesha ko thanx Aur shabdon me dil ki kasak pirone ke liye Priy tumko bhi....

M VERMA said...

इन रेशम केशों की छाया, जीवन की हर धूप भुलाती
इस चेहर की चंद्रप्रभा ही, दुनियां की हर रात सजाती
लाजवाब और फिर चित्रांकन के क्या कहने

Shekhar Kumawat said...

bahut khub

Apanatva said...

sunder prastuti.

डॉ टी एस दराल said...

ज़ज्बातों का अच्छा खुलासा किया है ।
सुन्दर प्रस्तुति।

रश्मि प्रभा... said...

केवल एक तुम्हीं तो मेरे, जीवन का आधार प्रिये
केवल एक तुम्हीं तो मेरे, सपनों का संसार प्रिये
तुम ही मौन हुए तो मेरी, इन सांसों का शोर कहां है
waah

शरद कोकास said...

रचना और रेखांकन दोनो सुन्दर ।

P.N. Subramanian said...

कविता के साथ रेखांकित चित्र भी प्यारी लगी.

दिगम्बर नासवा said...

कलेजा चीर दिया ... बहुत ही लजवाब रचना ... दिल से निकला कलाम ...

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