Wednesday 16 December 2009

कोई आया ही नहीं मेरे पास, आहटों के सिवा



मैने किस-किस के लिए, क्या-कया तोहफे रखे थे
कोई आया ही नहीं मेरे पास, आहटों के सिवा।

गया जमाना कि इन्सान को भी पढ़ा जाता था
अब तो बस लोग, सब पढ़ते हैं, लिखावटों के सिवा।

याद कुछ रहता नहीं, अपनी ही खबर किसको?
पुराने लोग थे कुछ और, बनावटों के सिवा।

मैं उससे बात तो करूंगा, पर क्या वो समझेगा?
मेरा खजाना है कुछ और, दिखावटों के सिवा।

पुल, नाव, तिनकों, दुआओं को सहारा बनाया
उसने ही पाया कुछ अलग, रूकावटों के सिवा।

बहुत थीं खूबियाँ, तो भी क्‍यों नाकाम रहा?
सब कुछ आता था उसे, सजावटों के सिवा।

10 comments:

दिगम्बर नासवा said...

याद कुछ रहता नहीं, अपनी ही खबर किसको?
पुराने लोग थे कुछ और, बनावटों के सिवा ...

सच कहा आज तो सब बनावटी हो गये हैं ......... पुराने लोगों में कुछ तो बात थी .........

रश्मि प्रभा... said...

मैं उससे बात तो करूंगा, पर क्या वो समझेगा?
मेरा खजाना है कुछ और, दिखावटों के सिवा।
.......sach hai.ab to sabkuch banawti hai

डॉ महेश सिन्हा said...

सही खाका आज की जिंदगी का

प्रीतीश बारहठ said...

खूब ! बहुत खूब !!

एक रदीफ़ रह रही है सजावटों के सिवा

Rajeysha said...

प्रीतीश जी की प्रेरणा से -


बहुत थीं खूबियाँ, तो भी क्‍यों नाकाम रहा?
सब कुछ आता था उसे, सजावटों के सिवा।

डॉ टी एस दराल said...

गया जमाना कि इन्सान को भी पढ़ा जाता था
अब तो बस लोग, सब पढ़ते हैं, लिखावटों के सिवा।

बहुत खूब।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सुन्दर !

लोग कहते है यहाँ हर चीज विशुद्ध मिलती थी !
हमें तो कुछ मिला ही नहीं मिलावटों के सिवा !!

Rajeysha said...

गोदि‍याल जी की कोशि‍श में कोई मि‍लावट नहीं, शुद्ध है।

vandana gupta said...

मैने किस-किस के लिए, क्या-कया तोहफे रखे थे
कोई आया ही नहीं मेरे पास, आहटों के सिवा।

bahut hi sundar bhav.

Neeraj Kumar said...

बहुत ही सुन्दर ब्लॉग है और achchhi रचनाओं का प्रस्तुतीकरण करीने से किया है... आकर अच्छा लगा....

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