Wednesday 16 December 2009

हैरान थे अपनी किस्मत से



खुशी का आंसू, गम का आंसू, कैसे मैं पहचान करूं?
दोनों ही बहुत चमकते हैं, दोनों ही तो खारे हैं

बेबस मैं उम्रों-उम्रों तक, उस दिलबर का अरमान करूं
ख्वाबों में रहें या हकीकत में, मेरे जीने के सहारे हैं

मिले इक बार ही जीवन में, है उनका बहुत अहसान यही
उनकी यादों के भंवर में डूबे, हम तो लगे किनारे हैं

हमने था जिसे खुदा जाना, उसने ही समझा बेगाना
हैरान थे अपनी किस्मत से, कि हम कितने बेचारे हैं

नफरत करें या करें उल्फत, दोनों का अंजाम यही
उनके लिए हम ‘अजनबी’ हैं, वो सदा ही हमको प्यारे हैं

( पुर्नप्रेषि‍त)

5 comments:

kshama said...

खुशी का आंसू, गम का आंसू, कैसे मैं पहचान करूं?
दोनों ही बहुत चमकते हैं, दोनों ही तो खारे हैं!
Behad sundar rachna aur utnahee sundar chitr!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मिले इक बार ही जीवन में, है उनका बहुत अहसान यही

उनकी यादों के भंवर में डूबे, हम तो लगे किनारे हैं



हमने था जिसे खुदा जाना, उसने ही समझा बेगाना

हैरान थे अपनी किस्मत से, कि हम कितने बेचारे हैं

Bahut sundar sach !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मिले इक बार ही जीवन में, है उनका बहुत अहसान यही

उनकी यादों के भंवर में डूबे, हम तो लगे किनारे हैं



हमने था जिसे खुदा जाना, उसने ही समझा बेगाना

हैरान थे अपनी किस्मत से, कि हम कितने बेचारे हैं

Bahut sundar sach !

aarya said...

सादर वन्दे!
नफरत करें या करें उल्फत, दोनों का अंजाम यही
उनके लिए हम ‘अजनबी’ हैं, वो सदा ही हमको प्यारे हैं
क्या खूब लिखा है आपने, अति सुन्दर
रत्नेश त्रिपाठी

डॉ टी एस दराल said...

हमने था जिसे खुदा जाना, उसने ही समझा बेगाना
हैरान थे अपनी किस्मत से, कि हम कितने बेचारे हैं

बहुत खूब लिखा है।

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