Saturday 14 November 2009

लोग



बहुत चमकते-बहुत खनकते, गहराई तक खोटे लोग।


मौके की ढलानों पे लुढ़कते, बेपेंदी के लोटे लोग।


दूजों को क्या समझाते हैं? खुद जो अक्ल से मोटे लोग।


गिरेबां खुद का झांक न देखें, दूजों के नोचें झोंटे लोग।


बडी-बड़ी कविताएं लिखते, दिल के छोटे-छोटे लोग।


बेफिक्र होकर हलाल करें, वेद-कुरान को घोटे लोग।

6 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

गिरेबां खुद का झांक न देखें, दूजों के नोचें झोंटे लोग।


बडी-बड़ी कविताएं लिखते, दिल के छोटे-छोटे लोग।


बेफिक्र होकर हलाल करें, वेद-कुरान को घोटे लोग।

bahut hi sateek aur sahi kavita....

behtareen likha hai aapne....

अपूर्व said...

सारे सच उघाड़ के सामने रख दिये इस रचना के द्वारा..

मौके की ढलानों पे लुढ़कते, बेपेंदी के लोटे लोग।

..बहुत खूब कहा आपने !!

दिगम्बर नासवा said...

मौके की ढलानों पे लुढ़कते, बेपेंदी के लोटे लोग।
दूजों को क्या समझाते हैं? खुद जो अक्ल से मोटे लोग। ......

SAHI KAHA HAI ... AAJ KAL AISE LOGON KI TAADAAD BHI BADH GAYEE HAI ... BEHATREEN LIKHA HAI ...

रश्मि प्रभा... said...

kafi kuch hai is rachna mein
....ek spasht virodh

नीरज गोस्वामी said...

भाई वाह...क्या खूब लिखा है...एक दम सच्ची बात...
नीरज

sandhyagupta said...

"Logon" ka sara kachcha chittha khol diya aapne to. Dekhen "log" kya kahte hain?

Post a Comment