Monday 30 November 2009

हम अष्टावक्र हैं



हम सच को
विभाजनों की खिड़कियों में बैठे हुए,
आंखों पर रंग बिरंगे चश्मे (पूर्वाग्रहों) चढ़ाए
अतीत के अहसासों,
मधुर जहरीली संवेदनाओं की
असंख्य परतों के पीछे से देखते हैं
और फिर शिकायत करते हैं कि
सब धुंधला और विकृत है

हम सच को
प्रतिष्ठित विचारधाराओं
ठोस सिद्धांतों
अतीत, भविष्य की कल्पनाओं में
उच्च मानवीय मूल्यों में
पढ़ते पढ़ाते आए हैं
पर रोज पैदा हो जाती हैं
असंख्य नई समस्याएँ
और हमारे पास
कई करोड़ पुरानियों का ही हल नहीं है।

हम क्यों नहीं समझते
रोज हर क्षण
उगता रहता है अनवरत नया सच।

क्यों हम
केवल आंख ही नहीं हो जाते
क्यों जोड़ते घटाते हैं
आंख के देखे में....

क्यों हम कान ही नहीं हो जाते
क्यों जोड़ते घटाते हैं
कान के सुने में ....

क्यों हम गंध ही नहीं हो जाते
क्यों जोड़ते घटाते हैं
नाक के सूंघे में

क्यों आदत पड़ गई है हमें
पानी जैसी
जिसमें विकृत नजर आता है
सब डूबा हुआ

क्यों चाहते हैं हम रोज़
सब तरफ से सुरक्षित रहें
जिएं बहुत पुरानी और सुविधाजनक सांसें
जिन्हें लेने पर आवाज भी नहीं आए
ऐसा तो कब्रों में होता है न!

Friday 27 November 2009

हौसलों की बात



रास्तों की बात थी, न मंजिलों की बात थी,
कदम क्या कहते मेरे? और, हौसलों की बात थी।

शहर क्या? वीराना क्या? था अपना क्या? बेगाना क्या?
मेरी निगह ने जो किये, उन फैसलों की बात थी।

नजरों ने देखा उसे और दिल का मेहमां कर लिया,
वो जवां हुआ दर्द सा, या किस्मतों की बात थी।

मैं नहीं भूला उन्‍हें, उन्‍होंने कभी याद नहीं कि‍या
नहीं मेरी दीवानगी, मि‍जाज ए उल्‍फतों की बात थी

अब तो खवाबों में भी बस, नाम सा उनका सुनते हैं,
वक्त के जो तय किये, उन फासलों की बात थी



डॉ. हीरा इंदौरी की मार्च 2006 में प्रकाशि‍त एक बन्‍दि‍श
औरत
अश्क बरसाए तो सावन की झड़ी है औरत ।
मुस्कराए तो सितारों की लड़ी है औरत ।।

लुत्फ आता है वहां ये जहां हिलमिल के रहें ।
आदमी है जो पकोड़ा तो कढ़ी है औरत ।।

आदमी जब इसे पाता है तो बन जाता है मर्द।
कोई टानिक कोई बूटी जड़ी है औरत ।।

सिर्फ औरत की ही हर बात चले जिस घर में ।
उसमें हर आदमी छोटा है बड़ी है औरत ।।

गैर की हो तो नहीं रूपमती से कुछ कम ।
और अपनी हो तो लगता है सड़ी है औरत ।।

सुबह होते ही वो बच्चों पे बरस पडती है ।
अपने घर में तो अलारम घड़ी है औरत ।।

चाहे झांसी का किला हो के हो वो चिकमंगलूर ।
कोई मैदान हो मर्दो से लड़ी है औरत ।।

लोग इसे चांद से सूरज से हसीं कहते है ।
बावजूद इसके अंधेरे में पड़ी है औरत ।।

इसमें कुछ शक नही सब कहते है 'हीरा' मुझको ।
पर मेरे दिल की अंगूठी में जड़ी है औरत ।।

Wednesday 25 November 2009

तुम हमारे अजनबी, हम तुम्हारे अजनबी

हमने देखे सच के इशारे अजनबी
अपनी ही आंखों के नजारे अजनबी

अपनों की गुजारिशें और राम का भाग्य
सोने के हिरन थे सारे अजनबी

मुश्किल हालात, नहीं बस में बात
शहर अपना है लोग सारे अजनबी

अजनबीयत का रिश्ता अजीब देखा
तुम हमारे अजनबी, हम तुम्हारे अजनबी

अमावस रातों में जिन्दगी का सफर
चांद अजनबी सितारे अजनबी

जिन्दगी ने धीरे - धीरे से सिखलाया
फूल, खुश्बू, रंग, सनम सारे अजनबी


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जीवन की गहराई में


प्रेम क्या है? डेविड लयूक कहते हैं ‘‘अनन्त प्रेम ही सत्य है, शेष तो प्रेम के नाम पर भ्रम ही है’’ हालांकि वैज्ञानिकों द्वारा चिकित्सा अध्ययनों में हमारे जीन्स को आधार मानकर प्रेम की व्याख्याएं करने की कोशिश की गई है। मूलतः उन्होंने पाया है कि हम उस व्यक्ति के प्रति आकर्षित होते हैं जो आनुवांशिक तौर पर बीमारियों और अन्य कमजोरियों में हमारे ही समान होता है।

हालांकि हमारा प्राचीन ज्ञान हमें एक दूसरे ही दृष्टिकोण से शिक्षित करता है। प्राचीन ज्ञान और पुरानी पवित्र माने जाने वाली अध्ययन सामग्रियों में यह विश्वास व्यक्त किया गया है कि हमारा शरीर (व्यक्तिगत आत्म या स्व) अपने चारों ओर चार ऊर्जाओं (चार या अहं) से मिलकर बना है।

यह चार प्रकार की ऊर्जाएं हैं: 1. भौतिक ऊर्जा अपनी आवश्यकताओं सहित 2. संवेदी अपनी इच्छाओं सहित 3. भावना अपने अहसासों सहित और बौद्धिक ऊर्जा अपनी संकल्पनाओं सहित। हमारे आत्म के उच्च स्व या आत्म तक पहुंचने के लिए ये ऊजाएं संतुलित होनी चाहिए। चूंकि इस बिखरे विक्षेपित संसार में यह बहुत ही कठिन कार्य है इसलिए हम अक्सर किसी उस व्यक्ति (जीवन साथी) की तलाश में रहते हैं जो (जैसे जीन्स का आदान प्रदान होकर संकर जीन्स बनते हैं वैसे ही हमारी और अगले व्यक्ति की अधूरी और रिक्त ऊर्जांए मिलकर) हमें उच्च आत्म स्तर अस्तित्व तक ले जा सके।

प्राच्य विद्याओं की मान्यता थी कि हम आत्मा सहित पैदा नहीं होते, बस आध्यात्मिकता के बीज सहित पैदा होते हैं और इस जन्म लेने का ध्येय आत्मा की खोज होता है अथवा अपनी उच्च आत्मावस्था की खोज। क्या ये वैसी ही कोशिश नहीं होता जैसी कि हम लोहे की धातु को सोना बनाना चाहें।

मुझे यह संकल्पना एकबारगी सही लगी कि वाकई जिन इंसानों को हम अपने आस पास चलते-फिरते देख रहे हैं उनमें से अधिकतर की आत्माएं तो पक्के तौर पर नहीं हैं। फिर बहुतेरे तो ऐसे शरीर हैं जो केवल भौतिक ही हैं, या भावानात्मक ही हैं, या संवेदी ही हैं या फिर केवल बौद्धिक ही हैं। यानि इस संकल्पना के अनुसार तो हम सब लूले लंगड़े और पंगु ही हैं, किसी में किसी अंग तो किसी अन्य में दूसरे अंग का अभाव है, संतुलन नाम की चीज दुर्लभ ही दिखाई देती है।

वैसे ये संकल्पना हमारी उस ‘‘कला’’वादी संकल्पना के काफी निकट है जिसमें ये ख्याल था कि आदमी में कलाएं होती हैं। जितनी कलाएं होंगी वो उतना ही ऐश्वर्यशाली या ईश्वर होगा जैसे राम में कलाएं कम थी और कृष्ण में अधिक, और ऐसे ही अन्य ऐतिहासिक चरित्रों में न्यूनाधिक मात्रा में कलाएं थीं।

झूठ के इशारे
झूठ को सामान्यतः इन संकेतों से पहचाना सकता है: अचानक ही मुंह से ‘उं’, ‘आं’ ‘आ’ की आवाजें सामान्य से अधिक बार निकलना, अपने आप ही बचाव की मुद्राएं बनना, नजरें चुराना, नजर ना मिला पाना, तनाव पूर्ण होना, झूठा व्यक्ति अंदर से तो कड़वेपन का अहसास कर रहा होता है पर ऊपर ही ऊपर मुस्कान बिखेरता नजर आता है। वह अपने शरीर को आपसे दूर दूर सा करता है,वह आपसे टलने की कोशिश करता है। उसके शारीरिक हाव भाव असामान्य होते हैं और उसके हाथ मुंह को ढांकने के लिए बार-बार ऊपर को उठते हैं। झूठ बोलने वाले व्यक्ति की धड़कने अनियमित होती हैं।
वैसे आप यह सब जानने के बाद कितनी ही निपुणता से झूठ बोलिये, अंततः ‘‘सत्यमेव जयते’’ ही होता है, नहीं ?


रोचक तथ्य:

  • शुतरमुर्ग की आंखें उसके दिमाग से बढ़ी होती हैं। इससे साबित होता है कि कोई आंखे तरेरे तो उससे डरने की कतई जरूरत नहीं।
  • कछुआ अपने गुदाद्वार से भी सांस ले सकता है।
  • अंगे्रजी में जी ओ ’’गो’’ सबसे सरल और सम्पूर्ण वाक्य है।
  • प्रसिद्ध ‘‘बारबी डॉल’’ का पूरा नाम बारबरा मिलिसेंट राबर्ट्स है।
  • हमारी आंखें जन्म से लेकर जीवन पर्यन्त एक सी रहती हैं, पर नाक और कान आजीवन बढ़ते रहते हैं।
  • एक घोंघा तीन वर्ष तक सो सकता है।
  • स्त्रियाँ पुरूषों से दुगुनी बार पलके झपकतीं हैं। वैसे ज्यादा पलके झपकने वाले पुरूषों के बारे में यह विश्वास होता है कि वो झूठे और चालबाज हैं।
  • दो अरब लोगों में से एक व्यक्ति ही 116 साल या अधिक की आयु जी पाता है।
  • औसतन प्रतिवर्ष 100 लोग बॉल प्वाइंट पेन मुंह में लेते-लेते, अचानक गले में चले जाने और दम घुट जाने के कारण मर जाते हैं।
  • किसी भी बतक्ख के मुंह से निकली आवाज ‘‘क्वेक क्वेक’’ कभी भी गूंजती नहीं, कोई भी नहीं जानता ऐसा क्यों होता है।

    Tuesday 24 November 2009

    श्रम के मोती काफी

    पेट भरे नींद आ आये, इतनी रोटी काफी
    मेहनत करूं और चढ़े देह पर, उतनी बोटी काफी

    लानत है इस फैशन पर, रूह नंगी कर देता है
    जिसमें मेरे पैर समाएं, इतनी धोती काफी

    चाँद, तारे, सूरज की किरने, रोशनी कुछ ज्यादा है
    कदम-कदम जो राह दिखाये, दीप की ज्योति काफी

    बेईमानी की धन-दौलत से, भ्रम न हो कामयाबी का
    माथे पर जो झलकें-चमकें श्रम के मोती काफी

    Sunday 22 November 2009

    हकीकत के फल



    काशी काबे की बातों में, ये दिल भरमायेगा तुझको
    खुदा खुद ही यहाँ चला आयेगा, तू अपने दिल को मक्का कर

    तस्सव्वुर तो रंग बिरंगे हैं, फल फूल जो देखे आखों ने
    ये जहर भरे कि हैं अमृत, हकीकत के फल भी चक्खा कर

    आठों ही पहर कड़ी मेहनत, और सोहबत नई तदबीरों की
    कहाँ खर्चने नगीने सांसों के, जरा ध्यान इधर भी रक्खा कर

    अश्कों की नदी दुख के सागर, ना किनारे इनके बैठा कर
    जरा उतर तो इन गहराईयों में, जरा अपने इरादे पक्का कर

    इक बीज में सारा जंगल छुपा, कैसे ये हुआ दुनियां को दिखा
    नहीं, आम मौत मर जाना नहीं, जरा जहां को हक्का-बक्का कर
     

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    सपने की हकीकत :
    सपना अर्द्ध चेतन अवस्था होती है जिसमें हमारा अपने ही विचारों और अभिव्यक्तियों पर नियंत्रण नहीं होता। अपवादस्वरूप कुछ एक लोग इस बात में पारंगत होते हैं कि वो सपने में वो सब देख सकें जो वो देखना चाहते हैं। क्या आप जानते हैं कि हममें में अधिकतर लोग जीवनभर में 6 साल सपने देखते हुए बिताते हैं? अनुसंधानों से सिद्ध हो चुका है कि हम सभी अपनी एक सामान्य नींद के दौरान कम से कम दो या अधिक बार सपने देखते हैं हालांकि जागने के बाद ये हमें याद नहीं रहते। सामान्यतः जागने के 5 मिनट बाद आधे से ज्यादा सपने भुला दिये जाते हैं और जागने के 10 मिनट बाद सारे सपने भुला दिये जाते हैं।
    वो लोग जो जन्म से अंधे होते हैं वो भी सपने देखते हैं। जन्मांध लोगों के सपने स्पर्श, गंध, ध्वनि और स्वाद जैसी इन्द्रियों पर आधारित होते हैं। रोमन युग में संसद में कुछ उन सपनों पर चर्चा और व्याख्या भी होती थी जिन्हें समझा जाता था कि ईश्वर ने मानवजाति के लिए दिखाया है।
    उन सपनों जिन पर व्यक्ति का थोड़ा बहुत नियंत्रण होता है, सबोधगम्य सपने कहते हैं।
    जागरूक रहने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि हम सपनों का अभ्यास करें। हम सपनों को लिखें और सपनों की श्रंखला का रिकार्ड रखें, यह हमारे अपने बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण है।
    दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि हम उन संकेतों और उत्प्रेरकों को लिखकर रखें जो हमें सपना देखने के दौरान इस बात के ज्ञान में सहायक हों कि हम स्वप्न अवस्था में हैं। एक बार हम सबोधगम्य सपने देखना शुरू कर दें तो हम सवप्न अवस्था में काल्पनिक अनुभवों पर नियंत्रण कर सकते हैं। यह उन लोगों के लिए अतिमहत्वपूर्ण है जिन्हें बुरे सपने आते हैं। एक मजेदार तथ्य यह भी है कि नींद के दौरान हमारा शरीर अचल हो जाता है शायद इसलिए कि हम नींद में सपनों को चलते-फिरते हकीकत न करने लगें।
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    मजेदार तथ्‍य :

    • यदि आप 8 वर्ष और 7 माह तक चिल्लायें तो आप इतनी ध्वनि ऊर्जा पैदा कर सकते हैं जो एक कप कॉफी बनाने के लिए पर्याप्त हो।
    • एक सूअर 30 मिनट तक संभोगावस्था में रह सकता है।
    • एक मगरमच्छ अपनी जुबान बाहर नहीं निकाल सकता।
    • यदि आप दीवार पर सर मारते हैं तो इसमें 150 कैलोरी प्रति घंटा खर्व होगी।
    • केवल आदमी और डॉल्फिन ही ऐसी प्राणी प्रजातियां  हैं जो केवल सुख के लिए संभोग करती हैं। 
    • आदमी के शरीर में सबसे मजबूत मांसपेशी है जीभ।
    • सीधे हाथ से काम करने वाले लोग, उल्टे हाथ से काम करने वाले खब्बुओं से औसतन 9 वर्ष अधिक जीते हैं। क्या आपको मालूम है - धु्रवीय भालु भी खब्बू होते हैं?
    • चींटी अपने वजन से 50 गुना अधिक वजन उठा सकती है और 30 गुना अधिक वजन खींच सकती है। चींटी नशे में होने पर हमेशा सीधे हाथ की ओर गिरती है। क्या आपको मालूम है कि नशे में होने पर आप किस और गिरते हैं?
    • मौत के मुंह में जाने से बचा एक काकरोच अपने सिर के बिना, यानि एक कॉकरोच का धड़ 9 दिन तक जिन्दा रह सकता है।
    • कुछ शेर दिन में 50 बार संभोग कर सकते हैं।
    • स्टारफिश का दिमाग नहीं होता।
    • तितलियां अपने पैरों से स्वाद का अनुभव करती हैं।
    • मच्छर भगाने वाले साधन ऑलआउट वगैरह मच्छरों के संवेदी अंगों को निष्क्रिय कर देते हैं जिससे उसे पता नहीं चलता कि आप कहां हैं?
    • दंत चिकित्सक सलाह देते हैं कि आप अपने टूथब्रध को कमोड से कम से कम 6 फिट दूर रखें।
    • एक जवान नारियल में भरा पानी ब्लड प्लाज्मा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
    • किसी भी कागज के टुकड़े को (अपने आकार से आधा करते हुए ) 7 बार से ज्यादा नहीं मोड़ा जा सकता।
    • उतने लोग वायुयान दुर्घटनाओं में नहीं मरते जितने गधों द्वारा मार दिये जाने से।
    • आप टीवी देखकर उतनी कैलोरी खर्च नहीं करते, जितनी सो कर।
    • तस्मों के किनारे पर लगी चीज एग्लेट्स कहाती है।
    • वॉल्ट डिज्नी चूहों से डरते थे।
    • यदि आप 6 वर्ष 9 माह तक लगातार अपानवायु नि‍ष्‍कासन में सक्षम हों तो इतनी गैस पैदा हो सकती है जो एक एटम बम जितना ऊर्जा पैदा कर सके।
    • मोती सिरके में पिघल घुल जाते हैं।

    Thursday 19 November 2009

    तुम कहाँ हो ?



    यूं तो मुझको कोई गम न था, क्यों याद तुम्हारी आती रही
    कोई आग सी दिल में दबी-दबी, आहों की हवा सुलगाती रही

    जब भी तेरा नाम सुनाई दिया, इस दुनियां की किसी महफिल में
    कई दिन तक, फिर इन आंखों में, तस्वीर तेरी लहराती रही

    छोड़ू ये शहर, तोड़ूं नाते, जोगी बन वन - वन फिरता रहूं
    कहीं तो होगा विसाल तेरा, उम्मीद ये दिल सहलाती रही

    कई बार मेरे संग हुआ ऐसा, कि सोते हुए मैं उठ बैठा
    मैं तुमसे मिन्नतें करता रहा, तुम खामोश कदम चली जाती रहीं

    तेरा मिलना और बिछड़ जाना, इक ख्वाब सा बनकर रह गया है
    तेरे होने, न होने की जिरह, ता जिंदगी मुझे भरमाती रही

    Saturday 14 November 2009

    लोग



    बहुत चमकते-बहुत खनकते, गहराई तक खोटे लोग।


    मौके की ढलानों पे लुढ़कते, बेपेंदी के लोटे लोग।


    दूजों को क्या समझाते हैं? खुद जो अक्ल से मोटे लोग।


    गिरेबां खुद का झांक न देखें, दूजों के नोचें झोंटे लोग।


    बडी-बड़ी कविताएं लिखते, दिल के छोटे-छोटे लोग।


    बेफिक्र होकर हलाल करें, वेद-कुरान को घोटे लोग।

    Thursday 12 November 2009

    जिन्दगी के लोन बेमियादी हैं



    जुबान भीड़ के लिए फरियादी है,
    आज मूड समाजवादी है।

    सच का शोर मचाओ, मर जाओ,
    अपने संविधान में भी आजादी है।

    डॉन नहीं, हीरो नहीं, नेता नहीं, रईस नहीं,
    अदालत में खड़ा ही क्यों ये फरियादी है?

    कुंआरेपन को ब्याहों की नजर लगी,
    खुली जेल की सजा सी शादी है।

    आखिरी सांस तक चुकाते रहो,
    जिन्दगी के लोन बेमियादी हैं।

    परमाणु बमों से ही हल होगी,
    बढ़ती समस्या, बढ़ती आबादी है।

    Monday 9 November 2009

    आदमी की संभावना



    कुत्ता, कुत्ते सा
    अजगर, अजगर सा ही होता है

    गिरगिट, गिरगिट सा
    भेड़िया, भेड़िये सा ही होता है

    गिद्ध गिद्ध सा
    सूअर, सूअर सा ही होता

    बैल, बैल सा
    गधा, गधे सा ही होता है

    सांप, सांप सा
    केंचुआ केंचुए-सा ही होता है

    फिर क्यों आदमी
    कुत्ता, अजगर, गिरगिट
    गिद्ध, सूअर, बैल
    गधा, सांप, केंचुआ
    सब कुछ हो जाता है?

    क्यों नहीं रहता
    आदमी, आदमी सा?

    या,
    आदमी वो संभावना है
    जो सब कुछ हो सकता है?
    आदमी से बदतर,
    आदमी से बेहतर।

    या,
    आदमी का होना
    बदतर और बेहतर
    दो अतियों में झूलना है।

    या,
    आदमी, इस सारे प्रपंच से
    होश की छलांग लगाकर
    बाहर हो सकता है?
    हमेशा के लि‍ए।

    Saturday 7 November 2009

    नई तरकीबें




    मेरी दीवानगी की हदें, अज़ब सी चीजें ढूंढती हैं
    ख़्वाबों के तहखाने में, जिन्दा उम्मीदे ढूंढती हैं

    मसीहा भी तैयारी से, आते हैं इन्सानों में
    मालूम उन्हें भी होता है, क्या सलीबें ढूंढती हैं


    हजारों दिवालियां चली गई, पर राम नहीं लौटे
    नन्हें चिरागों की रोशनियाँ, अब नई तरकीबें ढूंढती हैं


    बिना ब्याहे संग रहना, और माई-बाप से तंग रहना
    जाने क्या? कैसे रिश्ते? अब तहजीबें ढूंढती हैं


    इस ब्‍लॉग पर रचनाएं मौलिक एवं अन्‍यत्र राजेशा द्वारा ही प्रकाशनीय हैं। प्रेरित होने हेतु स्‍वागत है।
    नकल, तोड़ मरोड़ कर प्रस्‍तुत करने की इच्‍छा होने पर आत्‍मा की आवाज सुनें।


    Thursday 5 November 2009

    घास



    घास आदमी के पैरों को
    चलने की सहूलियत देती है

    घास जानवरों का पेट भरती है।

    घास से हष्ट-पुष्ट हुए जानवर खा
    मांसाहारी हष्ट-पुष्ट होते हैं।

    घास से
    नभचर, थलचर और जलचर
    सभी पलते हैं।

    जहाँ भी मिट्टी होती है
    अनायास उग आती है घास।

    धरती के सीने में हरदम रहते हैं,
    घास के बीज।

    घास धरती की अभिव्यक्ति है।

    जब भी परमात्मा कुछ नहीं होना चाहता
    घास हो जाता है।
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    Monday 2 November 2009

    कुछ मिला न तुझको चाह कर।

    न मन्दिर न दरगाह पर,
    कुछ मिला न तुझको चाह कर।

    ऐ मेरे जख्मों चुप करो
    क्या मिलेगा तुमको आह कर?

    अब मुझे भी चैन कैसे आये,
    वे तड़पा मुझे मनाह कर।

    वो मुझको अजनबी कहता है,
    मेरे दिल में गहरे थाह कर।

    वो नमाजें कैसे पड़ता है?
    किसी मन्दिर को ढाह कर?

    चाँद न जाने कहाँ गया,
    रात के मुँह को स्याह कर।

    इन्सान क्यों उनको कहते हो,
    जो जिएं एक दूजे को तबाह कर।

    ऐ दिल जल मत तू काबिल बन,
    नहीं मिलता कुछ भी डाह कर।

    मेरी महबूबा कहाँ खो गई,
    जब लाया उसे निकाह कर।

    छुरियाँ छुपा के गले लगा,
    मेरा दोस्त मुझे आगाह कर।

    उस रात से राख सा उड़ता हूँ,
    जब लौटा यादें दाह कर।

    मेरे मौला कड़ी सजा देना,
    जो बचूं मैं कोई गुनाह कर।

    जो अनन्त को पाना चाहता है,
    तो अपने दिल को अथाह कर।

    ऐ खुदा मुझे रंक या शाह कर,
    पर सदी ही अपनी पनाह कर।।