Wednesday 23 September 2009

कुछ भी तेरे बाद नहीं

मैं अभी भी उन राहों पर
सूखे पत्‍तों सा उड्ता हूं
जिन राहों पर आखिर बार
तुम मुझे तोड़ कर फेंक गए

मेरी आंखों में तुम ही तुम
मेरी सांसों में तुम ही तुम
मुझे खबर नहीं ऐ जादूगर
तुम कैसे मुझको देख गए

तेरी याद से मैं आजाद नहीं
दिल शाद नहीं नाशाद नहीं
देख कुछ भी तेरे बाद नहीं
लिख दीवानगी के लेख गए

हथेलियों में तलाशता रहता हूं
तुझसे रिश्तों की लकीरे मैं
थे कैसे गुनाह किए मैंने
कि मिट किस्मत के रेख गए


इस ब्‍लॉग पर रचनाएं मौलिक एवं अन्‍यत्र राजेशा द्वारा ही प्रकाशनीय हैं। प्रेरित होने हेतु स्‍वागत है।
नकल, तोड़ मरोड़ कर प्रस्‍तुत करने की इच्‍छा होने पर आत्‍मा की आवाज सुनें।

2 comments:

Unknown said...

तुम ही तुम........ तुम ही तुम

जब ऐसा होने लगता है तो ऐसी प्यारी कविता जन्म लेती है......

आपको बधाई !

Unknown said...

aaj bhi un rahon per udtahun sukhe patton saa ...jaha tum chhod gaye the....wah ..bahut khoob

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