Monday 28 September 2009

ऐ दिल खुदा से बात कर

ऐ दिल खुदा से बात कर!
ऐ दिल खुदा से बात कर!!

जब शाम ही से सीने में
इक खलिश1 सी रह-रह उठे
सिर तौबा-तौबा कह उठे
ऐ दिल खुदा से बात कर,
ऐ दिल खुदा से बात कर!!

तन्हाईयां भरपूर हों
मजबूरियों की घुटन हो
सब तोड़ती-सी टूटन हो
ऐ दिल खुदा से बात कर,
ऐ दिल खुदा से बात कर!!

जब, जब यकीं उठने लगे,
जब रिश्ते अनजाने लगें,
जब अपने बेगाने लगें,
ऐ दिल खुदा से बात कर,
ऐ दिल खुदा से बात कर!!

जब भी भंवर कोई दिखे
जब हौंसले न साथ दें
और कोई भी न हाथ दे
ऐ दिल खुदा से बात कर,
ऐ दिल खुदा से बात कर!!



1 खलिश - दर्द की लहर, चुभन


इस ब्‍लॉग पर रचनाएं मौलिक एवं अन्‍यत्र राजेशा द्वारा ही प्रकाशनीय हैं। प्रेरित होने हेतु स्‍वागत है।
नकल, तोड़ मरोड़ कर प्रस्‍तुत करने की इच्‍छा होने पर आत्‍मा की आवाज सुनें।

Saturday 26 September 2009

तेरी चाह में ना कोई राह मिली








तेरी चाह में ना कोई राह मिली
बस कदम कदम पर आह मिली

किसके आगे हम दम भरते
तेरी उल्फत का, तेरी चाहत का
न तेरा इशारा कोई मिला
न ऐसी कोई निगाह मिली

तूने चाहे दुनिया के सुख
दिल के रुख की सुनी नहीं
तूने देखी मेरी तंगहाली
न तुझे रूह की थाह मिली

जो दिल दे उसको दुख देना
जो आस करे, बेरुख रहना
तुझे किस रकीब1 का पास2 मिला,
तुझे किस अजीज3 की पनाह मिली

जिक्र तेरा आता है जहाँ
हम तुझको दुआ ही देते हैं
हम अजनबी चटखे शीशों में
हर सूरत को ही कराह मिली





1 पास - निकटता, सलाह, सम्मान, पर्यवेक्षण    2 अजीज - प्यारा अपना    3 रकी - दुश्मन


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Friday 25 September 2009

हमारा हदय उपवन

हमारा मन
परमात्मा रूपी परमरमणीय
आनन्द स्थली तक
पहुंचने वाला पथ है

हमारा मन, सावन की वह फुहार है
जो अपने भाव-अश्रुओं से
परमात्मा को अंकुरित करती है

परमात्मा के मधुमय अहसास से भरा हमारा मन
वह सुरभित पुष्प है
जिससे सारा उपवन महकता है

अपने मन से शोक का संहार करो
अपने मन को शुद्ध और दृढ़ बनाओ
जहाँ केवल परमात्मा फल फूल सके

अपने ह्रदय उपवन के चहुं ओर
दीवारें मत उठाओ
क्योंकि परमात्मा संकुचितता में
कुम्हला जाता है, मर जाता है

अपने ह्रदय के उपवन के द्वार खोलो
आने दो परमात्मा को भीतर
क्योंकि -
वही परम स्निग्ध छाया है
जिस तले जीवन के अंकुर फूटते हैं
वही हिमालयों से आई वह शीतल उर्वर पवन है
जिसमें उल्लासों की फुन्गियां लहलहाती हैं

अपने ह्रदय उपवन को
परमात्मा ही हो जाने दो
जिसका आदि ओर अंत न मिले

किस्मत हम नाशादों की

एक ही दौलत पास मेरे,
तेरे नाम ओ, तेरी यादों की
जो रस्में निभाने हम तरसे
जो नहीं किये उन वादों की

बस एक कसक सी रहती है
तुझ बिन जिए सावन भादों की
एक शिकायत खुद से है
रही कमी सदा ही इरादों की

जल भरे बादल परदेस गए
थी दिल पे घटा अवसादों की
शेष बचा बस रोना ही
ये किस्मत हम नाशादों की

Wednesday 23 September 2009

कुछ भी तेरे बाद नहीं

मैं अभी भी उन राहों पर
सूखे पत्‍तों सा उड्ता हूं
जिन राहों पर आखिर बार
तुम मुझे तोड़ कर फेंक गए

मेरी आंखों में तुम ही तुम
मेरी सांसों में तुम ही तुम
मुझे खबर नहीं ऐ जादूगर
तुम कैसे मुझको देख गए

तेरी याद से मैं आजाद नहीं
दिल शाद नहीं नाशाद नहीं
देख कुछ भी तेरे बाद नहीं
लिख दीवानगी के लेख गए

हथेलियों में तलाशता रहता हूं
तुझसे रिश्तों की लकीरे मैं
थे कैसे गुनाह किए मैंने
कि मिट किस्मत के रेख गए


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Tuesday 22 September 2009

झुमरी तलैया में।

हममें से बहुत सारे मनुष्य
उड़ना चाहते हैं।

या कम से कम
बचपन में दौड़ते, उछलते, कूदते समय तो
उनकी यह इच्छा
एक बार प्रकट होती ही है
कि काश!
वो भी किसी पक्षी की तरह उड़ पाएं।

पृथ्वी के असीम
रंग बिरंगे विस्तार में

सागर के किनारों से
बहुत भीतर तक

दूर आकाश में
पर्वतों की ऊंचाईयों
बादलों की गहराईयों तक

पर,
फिर पता नहीं क्या होता है
आदमी के साथ।

चिड़िया का भी परिवार बनता है
होते हैं-
उसके भी कई बच्चे
निभानी पड़ती है
उसे भी सारी दुनियादारी।
खुद और अपने परिवार को
खाने-पिलाने,
ढंकने सुलाने के लिए।

पर,
फिर पता नहीं क्या होता है
आदमी के साथ।

उलझ जाता है वो
किस चक्कर में
कि सारा दिन रात
नौकरी धंधे के अलावा
सारे सपने मर जाते हैं

न जाने क्यों, वो दो पैरों पर
चलने लायक भी नहीं रह जाता
रेंगने सा लगता है

और रेंगने वाले कीड़े मकोड़ों को
मौत की चील
कहीं भी,
कभी भी झपट ले जाती है।
हार्टअटैक,
दुर्घटना,
हत्या,
किसी भी बहाने से।
दिल्ली में,
बैंकाक में,
झुमरी तलैया में।

Monday 21 September 2009

खुशी का आंसू, गम का आंसू

खुशी का आंसू, गम का आंसू, कैसे मैं पहचान करूं?
दोनों ही बहुत चमकते हैं, दोनों ही तो खारे हैं

बेबस मैं उम्रों-उम्रों तक, उस दिलबर का अरमान करूं
ख्वाबों में रहें या हकीकत में, मेरे जीने के सहारे हैं

मिले इक बार ही जीवन में, है उनका बहुत अहसान यही
उनकी यादों के भंवर में डूबे, हम तो लगे किनारे हैं

हमने था जिसे खुदा जाना, उसने ही समझा बेगाना
हैरान थे अपनी किस्मत से, कि हम कितने बेचारे हैं

नफरत करें या करें उल्फत, दोनों का अंजाम यही
उनके लिए हम ‘अजनबी’ हैं, वो सदा ही हमको प्यारे हैं

( पुर्नप्रेषि‍त)

Saturday 19 September 2009

बुरे वक्त में

बुरे वक्त में
परमात्मा को कोसा जा सकता है
बेधड़क शिकायतें की जा सकती हैं
तोड़ी जा सकती हैं सारी औपचारिकताएँ

बुरे वक्त में
बरसों तक, बस सुबह या शाम
अगरबत्ती और दिया जलाने से ज्यादा
रिश्ते बढ़ाये जा सकते हैं परमात्मा से

बुरे वक्त में
जब किसी को कुछ भी नहीं सूझता
कि क्या करे? कहाँ जाए?
ईश्वर को एक मौका मिलता है,
जो उचित है वही करने का।


बुरे वक्त में,
जब साया भी साथ छोड़ जाता है।
तब आप पहली बार हम जानते हैं-
काली परछाईयों से आजाद रहकर,
जीने का स्वाद क्या होता है।

बुरे वक्त में
धुलता है मन का दर्पण
जब आपको रह-रह कर याद आते हैं
चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने
लापरवाह हो, जो पाप किये।

बुरे वक्त में
उठते हुए क्रोध के बवंडर
आंसुओं की बारिश में बदल जाते हैं।
खिजां के मौसम, बहार में ढल जाते हैं।

बुरा वक्त, हमेशा नहीं रहता।
बुरा वक्त, आदमी की अकड़ कम करता है।
बुरा वक्त इंसान को, खुदा के करीब ले जाता है।

बुरा कहा जाने वाला वक्त,
शायद उतना बुरा नहीं होता।

बुरे वक्त में इतना कुछ अच्छा होता है,
तो क्या ऐसे वक्त को बुरा कहा जाना चाहिए?

Wednesday 16 September 2009

वो बात न कर

जो दिल की जुबां से था बेगाना,
उस पागल की बात न कर।
जो तरसती धरती छोड़ गया,
उस बादल की बात न कर।।

रह-रह के रात गए बजती है,
हाए! उस पायल की बात न कर।
जो गया तो लौट के आया नहीं,
उस संगदिल की बात न कर।।

क्या मिलता है ख्वाबों यादों में,
उस हासिल की बात न कर।
जो निभाई है अपने वादों से,
उस मुश्किल की बात न कर।।

सारे जख्म जिस्म पर दिखते नही,
तू मुझ घायल की बात न कर।
हर्फ हर्फ में उसका तसव्वुर है,
तू शेर-गजल की बात न कर।।

नहीं जाने वीराने, क्या थी घुटन,
तू बस महफिल की बात न कर।
नहीं पूछा हुआ क्या कदम-कदम,
छोड़! ....बस मंजिल की बात न कर।।

जिससे टकरा-टकरा डूबे
तू उस साहिल की बात न कर
न पूछ क्या गुजरी ‘‘अजनबी’’ पे
बस आ गले मिल, कुछ बात न कर

Monday 14 September 2009

तेरा जादू

तुमसे जब नजरें मिलती हैं
दिल धक से रह जाता है
कुछ कैसे कहूँ, चुप कैसे रहूँ
कुछ भी समझ नहीं आता है

तेरी काली-काली आंखों में
दो सागर से लहराते हैं
मेरे सब्र के बेड़े बह जाते
मेरा कारवां ही डुब जाता है

तेरी जुल्‍फें गहरी काली घटा
तेरा माथा चांद है पूनम का
गालों पे दमकती बिजलियों से
मेरा मन जग जग सा जाता है

अमृत के छलकते पैमाने
तेरे होंठों पे मेरी सांसें चलें
वक्त भी थम सा जाता है
तेरा जादू सिर चढ़ जाता है

जुल्फों में बसी काली रातें
भीनी भीनी सी महकती हैं
रगों में बहती तड़पन में
कुछ है जो चुप हो जाता है

बेरूखी की राहें न चलना
छलना न दिल का आईना
कभी झूठ मूठ होना न खफा
मेरा होश ही गुम हो जाता है

Sunday 13 September 2009

विजय के बाद विराम

12 तारीख को अखबार में पढ़ते हैं कि ‘‘टीम इंडिया’’ दुनिया में नं 1 क्रिकेट टीम बन गई है और उसी रात रात 10 बजे भारतीय टीम के बारह बज जाते हैं। विश्व की नं 1 भारतीय क्रिकेट टीम को श्रीलंका द्वारा 139 रन से रौंद दिया जाता है।
क्रिकेट की तरह हाॅकी, लाॅन टेनिस, बाक्सिंग, कुश्ती, बेडमिंटन, स्कवैश, गोल्फ, शतरंज जैसे खेलों में भी भारतीय खिलाड़ी फाइनल -सेमीफाइनल तक पहुंचते हैं और ढेर हो जाते हैं।

एक अरब की रिकार्ड संख्या, भारतीय जनता को यह अनुभव उसी तरह लगता है जैसे एक स्वादिष्ट भोजन के बाद भयंकर खट्टे और गंदे अहसास वाले डकार का आना। खाया गया पूरा का पूरा गले तक आ जाता है, पानी और पेट में बनी गैस, नाक से उफन दिमाग तक चढ़ जाते हैं।

हमारा इतिहास इस दर्दनाक अहसास का कई बार गवाह रहा है।

महाराणा प्रताप ने साम्राज्यवादियों को कई बार मुँह तोड़ जवाब दिया पर आखिरकार अपनी ही आंखें निकलवा बैठे।

विदेशी आक्रांताओं का कई बार मुँह तोड़ देने के बावजूद एक लुटेरा हमारी समृद्धि के प्रतीक सोमनाथ मन्दिर को लूट ले जाता है और उसमें हम पर शासन की सामथ्र्य के बीज अंकुरित होने लगते हैं।

हमारे देश की आजादी का पकवान अभी एक रात दूर ही था कि पाकिस्तान के जन्म के गंदे डकार ने उम्र भर के लिए सड़ांध हमारे जहन में भर दी।

आजादी मिलने के पकवान की सुगंध से अभी हमारे नथुने पूरी तरह भरे नहीं थे कि किसी ने सत्य के प्रयोगों की राह चलने वाले हमारे महात्मा, गांधी को गोलियों से निकले शब्द ‘‘हे राम’’ बोलने को विवश कर दिया गया।

श्रीलंका में तमिल आतंकियों का जोर चरम पर था और कभी भी एलटीटीई चीफ प्रभाकरन श्रीलंका का सर्वेसर्वा बन सकता था, राजीव गांधी ने भारतीय सेना भेजी और श्रीलंका को पुनः सुरक्षित शांत क्षेत्र बनाया। मालदीव मंे तख्ता पलट की घटनाओं को भी हमारे सैनिकों ने रोका।
आईटी क्षेत्र के बीजों और पौध के पोषक युवा शक्ति के प्रतीक राजीव गांधी 21वीं सदी के सपनों को उतारने की ओर कुछ कदम चले ही थे कि तमिल आतंक रूपी नागों को कुचल कर छोड़ देने का खामियाजा भुगतना पड़ा। राजीव गांधी की देह की तरह हमने अपने सपनों के चिथड़े उड़ते देखे।

पोकरण परीक्षण की उपलब्धि की गलतफहमी से अभी पूरी तरह उबरे नहीं थे कि भारतीय वैज्ञानिकों ने ही उसे एक नाटक की तरह पेश करना शुरू कर दिया। हमारी परमाणुशक्ति सामथ्र्य पर फिर सवाल हैं?

बंगाल की खाड़ी को अपनी आत्महत्या का तीर्थ बनाने वाले भारत के फोकस-फुस्सी राॅकेटों की लीक से हटकर एक चन्द्रमा की ओर बढ़ गया तो भारतीय वैज्ञानिकों ने इसे चन्द्रयान अभियान का नाम दे दिया। विश्व के वैज्ञानिक ऐसे किसी भी अभियान की आयु 12 या 14 महीने से ज्यादा नहीं मानते पर भारतीय वैज्ञानिकों ने इसके 2 साल तक सफलता का स्वाद देने की भविष्यवाणी कर 1 अरब जनों में स्वादिष्ट खाद्य की स्वाद की लार को आधार दिया। पर इस बार भी हमें खट्टे, बदबूदार और गंदे डकार का शिकार महज 10 महीने बाद ही बना दिया गया। चन्द्रयान खत्म।

दरअसल हमारे देश की कोई फिल्मी हीरोइन विश्व मंच पर बाद में आती है चुम्मा कोई पहले ही ले लेता है। या जुम्मे से पहले ही चुम्मे की ताक में कोई न कोई खड़ा ही रहता है।

तो क्या सफलता या विजय को पाना और सतत बनाये रखना भारत के सन्दर्भों में प्रासंगिक नहीं?
विश्व में हम जब भी ऊंचाइयों को प्राप्त करें जाने कौन या किसकी नजर लग जाती है?

पता नहीं हम दुष्टों के हाथ-पाँव तोड़ कर या नागों के सिर कुचल कर छोड़ क्यों देते हैं, अग्नि संस्कार क्यों नहीं करते? ये सर या धड़ कटे राहू केतु या कुचले हुए काले शनि हमारी शांति की कुण्डली में बार-बार उठापटक करते रहते हैं।

दूसरी बात, राम ने रावण का अंतिम संस्कार तो किया पर सोने की लंका विभीषण को दे दी। अब विभीषण शब्द के अर्थ तो आप भली भांति जानते ही हैं। रावण को कैसे मारा जाय यह विभीषण ही जानते हैं और ज्यादा सच ये है कि विभीषण जिसका भाई या दोस्त हो उसे प्राणों की चिंता तो हमेशा ही करनी चाहिए। विभीषण का मतलब ये भी है कि वो आपका अपना ही रिश्तेदार है, प्रिय संबंधी है और यह भी जानता है कि आपके सर्वनाश के श्रेष्ठ उपाय क्या हैं?

भारत में रामराज्य के समय से विभीषणों को आश्रय दिया गया है। विभीषणों की पीढ़ियां की पीढ़ियां पलती रही हैं और भारत में भी कई सोने की लंकाएं खड़ी हो गई हैं। महाराणा प्रताप की आंखों को निकलवाने वाला जयचंद, विभीषण की पीढ़ियों से ही था। भारत में अंग्रेजों का सैकड़ों वर्षों का कार्यकाल ऐसे कई विभीषणों की सक्रिय उपस्थिति का जीता जागता सुबूत था।

आज भी भारत इन विभीषणों से परेशान है। पाकिस्तान की ओर से आते हैं तो इन्हें आतंकवादी कहा जाता है। बांग्लादेश से आएं तो शरणार्थी कहलाते हैं। भारत के अंदर नक्सलियों के रूप में सक्रिय रहते हैं।
ये किसी भी सोने की लंका को नेस्तनाबूद करने में अपने पूर्वज से कई गुना शक्तिशाली हैं। अस्त्रों शस्त्रों से लैस होनेके अतिरिक्त इनके अन्य रूप भी हैं।

भारतीय सेना सहित कौन सा ऐसा मंत्रालय है जिसमें भ्रष्ट विभीषणों की प्रभावी पकड़ नहीं हो। कई भारतीय विभीषणों का धन स्विस बैंकों मंे जमा है। विभीषण जेलों में हैं, जेलों से बाहर हैं। राम का नाम लेकर विभीषण चुनाव लड़ते हैं पर असली मक्सद तो सोने की लंका खड़ी करना होता है।

लेकिन भारतीयों की उदारता की कोई हद नहीं। विभीषण का चरित्र इतना पसंद है कि इटली से विभीषण का स्त्री संस्करण आयात किया गया। क्वात्रोची से साक्षात जीवंत संबंध पाये जाने के बावजूद भारतीय कानूनों की धुंध भारतीयों के मानस को ठंडा और अस्पष्ट करने में हर बार सफल रहती है। कानून गरीब और अक्षम के लिए हैं।

भारत देश के संदर्भ में एक ही चीज निरंतर सफल और सतत जारी रही है। विषम वितरण व्यवस्था और दलाली धर्म के अनुयायियों की बढ़ती जनसंख्या ने अन्य सारे वर्गों को अल्पसंख्यक कर दिया है। आत्महत्या कर रहे कंकालनुमा किसानों की तस्वीरें मिल जाती हैं, इथियोपिया की भुखमरी की तस्वीरें भारत में भी आम मिल जाती हैं। सपेरों और भुखमरों के देश के रूप में ही पहचाने जाने में विदेशियों को आज भी सफलता मिलती है। पराजय हो या दास बनकर जीना, वर्षाें हम आकंठ अलाली में डूबे रहना चाहते हैं। क्या विजय के बाद विराम हमारी नियति बन गई है?

Thursday 10 September 2009

असलीयत

पत्ती-पत्ती बिखेर डाली
रंग-ओ-बू को निचोड़ डाला
क्या था दिल में तेरे जालिम
गुल का हश्र ये क्या कर डाला

जिस्म की हरकतों पे हर नजर थी
रूह की ही बस नहीं खबर थी
रंगों में बहते हैं क्या रसायन
कतरा कतरा था टटोल डाला

मेरी मोहब्बत जो है, ख्वाब ख्याली
तेरी दुनियां भी है उम्रों संभाली
मिल के भी कभी, कहां मिलतें है
तेरे जिस्मों का है ढब, अजब निराला


जिसे भी मिला, अनदिखा मिला है
जिसे भी मिला, अनलिखा मिला है
करिश्में हैं ये उस खुदा के जिसने
तुझे बुत बना, मुझे काफिर कर डाला

Wednesday 9 September 2009

तुझ पर यकीं के लाख बहाने

मुझ पर शक की लाख वजह हैं
तुझ पर यकीं के लाख बहाने

जर्रा जर्रा तेरा जवाब है
झूठ हैं सारे सवाल सयाने

तू गढ़ता है तू बुनता है
नौ रंगों के ताने बाने

मेरा होना इक खयाल सा
दुनियाँ सारी ख्वाब बेगाने

क्यों तय करें मक्सद ए जिन्दगी
कदम कदम हैं तेरे निशाने

खुशबू, जमाल हो, इश्क, बन्दगी
कोई जुबां हो तेरे फसाने

किस्मत के किस्से अजीब

जिससे मीठी प्यारी कही, उसने ही मुझे प्यार दिया
खरी-खरी जो कही कभी, सबने ही दुत्कार दिया

कहीं नहीं जो प्रेम उधार मिला, तो कल्पना को विस्तार दिया
गिले शिकवे भी खुद से किये, खुद को बहुत दुलार दिया

दुनियां में जो सीधा जिया, उसने अपनों को भार दिया
दुनियां में जो टेढ़ा हुआ, दो पीढ़ियों को भी तार दिया

लोगों से बनकर भला बुरा, मैंने उसको आधार दिया
विश्वास किया जिस कश्ती पर, उसने ही मझदार दिया

मेरे सीधे सादे बोलों को तो सबने ही इन्कार दिया
घुमा फिरा कर जो बोला, उसे नेह दिया उपहार दिया

हैं किस्मत के किस्से अजीब, तन और धन जिसे अपार दिया
इक छोटा सा दिल दे डाला, जिसको सारा संसार दिया

मैं धन्य भाग प्रभु चरण राग, कि मुझे जीवन का सार दिया
रहूं सदा होश, न खोऊं जोश, ओ’ सदा सबको स्वीकार दिया

Monday 7 September 2009

या दिल की रहेगी बस दिल में




दिन जब अपने घर जाता है
जब रात उतरती है दिल में
तेरा गम मुझे फिर फिर लाता है
यादों की सुलगती महफिल में

इक राह मिले और ठहर गये
पर बात हुई बेगानों सी
हर कदम है देखा मुड़के तुझे
फिर पहुंचे नहीं किसी मंजिल पे

कोई पूछे नहीं क्या हुआ हमें
ये काम हैं आम दीवानों के
न नाम पता, न गाम पता
हम मर बैठे उस संगदिल पे

उम्मीद नहीं थी तुमसे कोई
दीदार भी देना छोड़ दिया
किस शहर गये तुम छोड़ हमें
क्या करम किया है बिस्मिल पे

अब क्या है इरादा तेरा बता
खफा हमसे हुई तुझे कहा खुदा
कभी मिलेगा फिर हो जलवानशीं
या दिल की रहेगी बस दिल में

Friday 4 September 2009

शुरूआत तो हो

किसी से उम्मीद रहे
किसी का इंतजार रहे
जीने में मज़ा आता है
जो जिन्दगी में प्यार रहे

दो बोल अपने कहो
दो बोल मेरे सुनो
तुम भी मायूस न हो
मुझे भी करार रहे

एक अफसाना तो हो
जो सबसे कहतें फिरें
ऐसा मौसम गुजरे
कि यादों में बहार रहे

कुछ लम्हें ऐसे हों
न ताउम्र वैसे हों
जो मुड़ कभी देखें
जिन्दगी में सार रहे

Wednesday 2 September 2009

तब की बात

तुमको अपना समझ लिया था,
फिर से गलत अनुमान था मेरा।

मेरा सलाम कुबूल हुआ था,
बस इतना सम्मान था मेरा।

सारे सितम हँस के सहता था
ये किस पर अहसान था मेरा?

जीते-जी कभी नहीं मिला था,
हाँ! वही तो भगवान था मेरा।

बरसों पहले भूल गया था,
क्या पहला अरमान था मेरा।

रोता और भड़क जाता था,
अभी जिन्दा इंसान था मेरा।

घुड़की-गाली सुन लेता था,
अहं नहीं परवान था मेरा।

*इस ब्लाग पर सम्पूर्ण पाठ्य(शब्द) सामग्री राजेशा रचित, मौलिक है।
**संपादित सामग्री को उचित सन्दर्भ, लिंक एवं मूल विवरण के साथ प्रस्तुत करने का हरसंभव प्रयास किया जाता है।

Tuesday 1 September 2009

मानव इतिहास के पांचवे महान वैज्ञानिक योशिरो नाकामत्सु

विभिन्न वैज्ञानिक खोजों के जनक जापान के डा योशिरो नाकामत्सु को मानव इतिहास में जन्मे महान मस्तिष्कसमृद्ध लोगों में शुमार किया जाता है। 3000 से अधिक पेटेंट हासिल करने वाले योशिरो को 36 वर्षों तक निरंतर, किये गये हर भोजन की बाकायदा फोटोग्राफी के साथ हर तथ्य का रिकार्ड रखने के लिए पोषण श्रेणी का नोबल पुरस्कार भी दिया गया। उन्हें अमेरिका की यूएस साइंस एकेडेमिक सोसायटी ने आर्कीमिडीज, माइकल फैराडे, मेरी क्यूरी, निकोल टेसला के बाद विश्व का पांचवा महान वैज्ञानिक घोषित भी किया।

एक स्कूलशिक्षक माता के गर्भ से, 26 जून 1928 को जापान में जन्में इस वैज्ञानिक ने 23 वर्ष की उम्र में कालेज लाइफ के दौरान फ्लाॅपी की खोज की थी, उसके बाद सीडी, डीवीडी, डिजीटल घड़ियाँ, कसरत और जागिंग के लिए आम आदमी से 3 गुना तेजी से दौड़ने में सहायक विशेष जूते, मानसिक क्षमता बढ़ाने वाली सेरेबेरेक्स चेयर, टैक्सीकेब मीटर, सिनेमास्कोप, कराओके मशीन, यौनशक्तिवर्धक स्पे्र लवजेड 200 इत्यादि उनके मुख्य आविष्कार रहे हैं। पानी से चलने वाले इंजन की यथार्थपरक परिकल्पना भी उनकी देन है। इन आविष्कारों की बदौलत उन्हें जापान का एडीसन कहा जाने लगा।

उनका आविष्कार सेरेबेरेक्स चेयर एक ऐसी कुर्सी है जिस पर आराम कर व्यक्ति की समरणशक्ति, गणित कौशल और दृष्टि क्षमता में सुधार होता है। इसके अलावा निम्न रक्तचाप, धमनियों में रक्त संचरण संबंधी रोगों में भी यह कुसी लाभदायक है। इस कुर्सी में विशेष ध्वनि तरंगे के कंपन पैरों से शुरू होकर मस्तिक तक प्रवाहित होते हैं। डा नाकामत्सु के अनुसार इस पर किया गया 20-30 मिनिट का विश्राम मस्तिष्क को 8 घंटे की आम नींद की ताजगी देता है।

अपने भोजन में वो रोज सूखे झींगे विशेष मिश्रण, समुद्री शैवाल, चीज, योगर्ट, ईल, अंडों, गोमांस और मुर्गे की कलेजी आदि लेते हैं। पौष्टिक भोजन, सुबह की सैर, व्यायाम के समर्थक डाॅ नाकामत्सु के अनुसार हमें अपने उन विचारों पर अधिक ध्यान देना चाहिए जो अचानक, एक फ्लैश लाइट्स की चमक की तरह आते और खो जाते हैं। क्योंकि इन्हें नोट कर इन पर अमल करना किसी भी व्यक्ति की जिंदगी बदलता या बदल सकता है।

उनकी खोजों का मुख्य समय रात्रि के 12 से सुबह के 4 बजे तक का है। वो दिन में 4 घंटे से ज्यादा नहीं सोते और मानते हैं कि किसी भी व्यक्ति के लिए 6 घंटे से ज्यादा सोना हानिकारक होता है। विशेष साधनों के साथ पानी के भीतर रहकर खोजें करने में आनंद मनाने वाले नाकामत्सु कहते हैं कि ‘‘आक्सीजन’’ मानव मस्तिष्क के लिए दुश्मन है।

जापान में डा नाकामत्सु के नाम से प्रसिद्ध इस वैज्ञानिक ने जीवन जीने यानि अपनी आयु का लक्ष्य 144 वर्ष रखा है। उनका ये भी कहना है कि वे अपने आयु लक्ष्य के दौरान संभवतः 6000 खोजें कर लेने का रिकार्ड बना डालेंगे।