Wednesday 26 November 2008

अगर ये आखिरी पल हों

जब
आपको बहुत दिनों से लग रहा हो
कि तबियत आजकल ख़राब रहती है
शायद अब मौत आने ही वाली है

और दो तीन दिन
लगातार ऐसा लगे ---

और फ़िर एक दिन पक्का सा लगे
कि आज आखिरी दिन ही है
तो इस आखिरी दिन
आप अपनी जिन्दगी के आखिरी दिन क्या करेंगे?
जनाब
ज्यादा सोचने की जरूरत नही है


क्योंकि आपने जिन्दगी के बारे में
इतने बरसों तक बहुत ज्यादा नही सोचा
और सोचा भी, तो कुछ नही किया
इन आखिरी दिनों में भी
आपने बस कयास ही लगाए

जिन्दगी को कुछ ख़ास नही दिया
कुछ ख़ास नही किया

जनाब
यदि मौत में और आपमें
अभी भी फासला है
तो क्या आपको
आदतों से आजाद नही होना है
आपको मौत के दिन तक भी
क्या अंदाजे ही लगाने हैं?

आदत अच्छी हो या बुरी
आदत है
अच्छे खासे आदमी को
मशीन बना देती है
और क्या आप मशीन बन कर मरना पसंद करेंगे?

7 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

वाह!! बहुत बढिया।आप की यह रचना कुछ सोचनें के लिए मजबूर करती है।

आदत अच्छी हो या बुरी
आदत है
अच्छे खासे आदमी को
मशीन बना देती है
और क्या आप मशीन बन कर मरना पसंद करेंगे?

Anonymous said...

अच्छी कविता है।

Varun Kumar Jaiswal said...

साहित्य हमे जीवन के प्रति संवेदनशील बनाता है , मुझे वाकई ऐसा लगा की आपकी रचनाए उस श्रेणी मे
आती हैं , ब्लॉग की साज़-सज्जा पर थोड़ी और मेहनत करें |
धन्यवाद

दिनेशराय द्विवेदी said...

कविताएँ पढ़ीं। अच्छी और दिशाबोध कराती सोच है।
कविता के अलावा ब्लाग पर गद्य भी अवश्य लिखें। वर्ड वेरीफिकेशन हटाएँ और चिट्ठाजगत और ब्लागवाणी पर पंजीकरण कराएँ।

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

wah kafi achchhi soch de rahi hai aapki ye kavita.....

P.N. Subramanian said...

बढ़िया लिखा है. आपका स्वागत है. द्विवेदी की बातों पर ध्यान दें. अब आप के कविता के बारे में - हमें तो मशीन बनकर मारना अच्छा लगेगा क्योंकि वह संवेदना हीन होगा.
http://mallar.wordpress.com

Pravallika said...

वाह!! बहुत अच्छी कविता है।

धन्यवाद

Pravallika

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